‘भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ दिल्ली चैप्टर, मैथिली भोजपुरी अकादमी और मंगलायतन यूनिवर्सिटी के साझा प्रयास से राजधानी में ‘भोजपुरी लिटरेचर फेस्टिवल -2018’ के उद्घाटन सत्र में वरिष्ठ पत्रकार ओंकारेश्वर पाण्डेय, विश्व भोजपुरी सम्मेलन के अध्यक्ष अजीत दुबे, संपादक प्रमोद कुमार, अभिनेता सत्यकाम आनंद दीप प्रज्ज्वलन कइलें आउर आपन-आपन विचार रखलें।
एह अवसर पर ‘भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ दिल्ली चैप्टर के समन्वयक जलज कुमार अनुपम फेस्टिवल के उदेश्य बतवलन कि ई भोजपुरी भाषा के गौरवशाली इतिहास से नवकी पीढ़ी के रुबरु करावल आउर भोजपुरीके लेके जबरी लोगन के बीचे फइलावल गइल भ्रम के तूरे के एगो परयास। वरिष्ठ पत्रकार ओंकारेश्वर पाण्डेय कहुवें कि भोजपुरी के खाली संविधाने में स्थान ना मिले, सथवे अल्पसंख्यको भाषा दर्जा मिले के चाहीं। विश्व भोजपुरी सम्मेलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजीत दुबे कहने कि भोजपुरी लिटरेचर फेस्टिवल के आयोजन बहुत सुखद बाटे। अइसन आयोजन से भोजपुरी के मान्यता के माँग बल मिली।
उत्सव के पहिलका सत्र ‘भोजपुरी भाषा के विरासत’ में वरिष्ठ साहित्यकार आ समीक्षक डॉ. ब्रजभूषण मिश्र आ डॉ. सुशील तिवारी वक्ता रहले, जेकरा से रोहित कुमार बतकही कइलें। भोजपुरी क्षेत्र के ऐतिहासिकपरम्परा के उकेरत डॉ. मिश्र जी कहनी कि भोजपुरी के आपन, समाजिक,सांस्कृतिक आउर अध्यात्मिक विरासत बाटे। भोजपुरी अनेक दौर से गुजरत अपने समृद्ध विरासत के एह वैश्विक परिवेश में अउरी समृद्ध करत बिया। डॉ सुशील तिवारी भोजपुरिया समाज के पहिचान, प्रतिरोध के संस्कृति ओर ध्यान खींचत कहले कि ई समाज राष्ट्र के निर्माण में महती भूमिका निभवले बाटे।
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लिट् फेस्ट के दोसरका सत्र ‘भोजपुरी का भाषिक स्वरूप’ में मुख्य वक्ता डॉ जयकांत सिंह के विचार रहे कि भोजपुरी के आपन स्वतंत्रत भाषिक स्वरूप बाटे। भोजपुरी के लगे आपन समृद्ध साहित्य आ व्यकारण बाटे। जे लोग एकरा पर सवाल उठावत बा, ओकरा भोजपुरी साहित्य के इतिहास के जानकारी नइखे चाहें उ लोग छद्म हिन्दी प्रेम के के शिकार बाटे। एह सत्र के डॉ. मुन्ना के. पाण्डेय प्रस्तुत करत कहले कि भाषा के संगे शत्रुता राखे वाली ताकत कवनों भाषा के प्रेमी ना हो सकेले। भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में अइला से कवनों भाषा के खतरा नइखे।
अगिला सत्र ‘भोजपुरी लोकगीत आउर ओहमे नारी चेतना के स्वर’ रहल, जवना में गुजरात से आइल विद्वान डॉ. प्रमोद तिवारी के विचार रहल कि लोक संस्कृति आ लोक भाषा मेहरारून के कन्हा पर टिकल बाटे। नारिये अनगिनत गीतन रचले बाड़ी, गवले बाड़ी आ नेह-नाता के जोगा के रखले बाड़ी। दोसरका वक्ता का रूप में श्री मार्कंडेय शारदेय कहलें कि भोजपुरी लोकगीतन में नारी ढेर सशक्त बिया आउर अपने अधिकार के खाति लड़े लागल बाटे। मेहरारून के पुरान संस्कृति से लेके नवकी परंपरा तक के चर्चा कइलें। केशव मोहन पांडेय एह सत्र के राखत वर्तमान संदर्भों में भोजपुरी लोक आउर मेहरारून के संबंध के जोड़लें आउर प्रासंगिक प्रश्न रखलें।
फेस्टिवल में ‘भोजपुरी सिनेमा के भविष्य’ पर बोलत निर्माता कमलेश मिश्र के मानी तs नीमन सिनेमा बनावे खाति नीमन लोगन के आगे आवे के परी। अभिनेता सत्यकाम आनंद कहने कि भोजपुरी सिनेमा अपना पुनर्निर्माण के दौर से गुजर रहल बाटे। एकर भविष्य सुघर होखी अइसन हमार विश्वास बाटे।
उत्सव के आखिरी सत्र में कवि सम्मेलन भइल जेकर अध्यक्षता दयाशंकर पाण्डेय कइने। कवियन में गुलरेज़ शहज़ाद, जयशंकर प्रसाद द्विवेदी, रश्मि प्रियदर्शिनी, हातिम जावेद,शशिरंजन मिश्र, सरोज सिंह, राजेश माँझी, गुरुविन्दर सिंह, अंशुमन मिश्र, देवकांत पाण्डेय आदि मौजूद रहलें।
एह सत्र के संचालन एसोसिएशन के दिल्ली चैप्टर के अध्यक्ष केशव मोहन पाण्डेय कइलें। कवि सम्मेलन के समापन का बाद भोजपुरी मासिक पत्रिका “भोजपुरी साहित्य सरिता” के पंडित हरिराम द्विवेदी विशेषांक आ प्रमोद कुमार के चटनी म्यूजिक के पोस्टर “माटी बिरसा मुंडा के” के एह मोका पर विमोचन भइल।