भोजपुरी के हास्य-व्यंग्यकारों की लम्बी तालिका बनायी जा सकती है। किन्तु यहाँ जिनकी चरचा की जा रही है वे वैसे रचनाकार हैं, जिनकी पहचान खासकर हास्य अथवा व्यंग्य रचनाकार के रूप में है। उनका वर्णानुक्रम संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है।
भोजपुरी के प्रमुख हास्य-व्यंग्यकार
1. आचार्य महेन्द्र शास्त्री : सारण जिला (बिहार) के महाराज गंज में 1901 में जनमें आचार्य महेन्द्र शास्त्री भोजपुरी के उन व्यंग्यकारों में से हैं, जिन्होंने अपनी रचना के साथ-साथ नये रचनाकारों की रचनाओं का सम्मान किया है। आपकी पहचान व्यंग्य-कवि के रूप में है। ‘चोखा’ आपकी व्यंग्य कविताओं का संग्रह है। राहुल पुस्तकालय, रतनपुरा से 1955 में प्रकाशित इस संग्रह की भूमिका रामजीवन शर्मा ने लिखी है। शास्त्री जी ने भोजपुरी’ नामक द्वैमासिक पत्रिका पहली वार 1948 में निकाली थी। इस पत्रिका के प्रवेशांक में रघुवीर नारायण की आत्मकथा, मनोरंजन प्रसाद सिंह का ‘फिरंगिया’ गीत पर संस्मरण तथा भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, गोपालगंज में राहुल जी द्वारा किया गया अध्यक्षीय भाषण छपा था।
2. ईश्वरचंद्र ‘मधसदन’ (मचई काका) : 5 जनवरी 1934 में छपरा जिला के मोहर नगर में जनमें मधुसूदन जी की पहचान भोजपुरी के हास्य-नाटककारों के रूप में है। ‘आकाशवाणी’ के पटना केन्द्र से आपके कई रेडियो रूपक तथा प्रहसन प्रसारित हो चुके हैं। कुल-देवता, धमकी, कश्मीर के शेर तथा पिआसल धरती आपके चर्चित नाटक हैं।
3. ईश्वर चंद्र सिन्हा : ईश्वर चंद्र सिन्हा पुरानी पीढ़ी के भोजपुरी व्यंग्यकारों में से हैं। 6 जुलाई, 1914 में आपका जन्म बनारस के ईश्वरगंगी में हुआ था। आपने कुछ दिन तक वनारस के ‘आज’ अखवार में सह-सम्पादक के रूप में काम किया। आपकी पहचान भोजपुरी में हास्य-व्यंग्य कथाकारों के रूप में हैं। ‘चेयरमैनी के चुनाव’ शीर्पक कहानी आपकी चर्चित रचना है। आपकी चौदह हास्य-व्यंग्य कहानियों का संग्रह 1971 में ‘गहरेवाजी’ नाम से छपा है।
4. कुबेरनाथ मिश्र ‘विचित्र’ : भाटपार रानी, देवरिया के रहनेवाले विचित्र जी भोजपुरी के पुराने हास्य-व्यंग्य कवि हैं। आप बाबा राघवदास इंटर कॉलेज, भाटपार रानी, देवरिया में अध्यापक हैं। आपकी कविताओं का संग्रह कई नामें से प्रकाशित है। भिनसहरा, दुपहरिया, तीजहरिया, चित्र-विचित्र, विचित्र समोसा, लीलावती-कलावती, चउथ चंदा, वलिया के खवर तथा डोर पंछोर आपकी प्रमुख कविता संग्रह हैं। इनका ‘डिबलर’ नामक नाटक ‘आकाशवाणी’ के आगरा, लखनऊ तथा वाराणसी केन्द्रों से प्रसारित हुआ है।
5. कुंजबिहारी प्रसाद ‘कुंजन’ : 20 जनवरी 1920 को वर्तमान रोहतास जिले के गढ़नोखा में जन्में कुजन जी की स्कूली शिक्षा मात्र तीसरी कक्षा तक हुई थी। आप हास्य और व्यंग्य के प्रमुख भोजपुरी कवियों में से थे। सीता के लाल (खण्डकाव्य), रसबुनियाँ (गीत संग्रह) तथा कुरकुरहट (हास्य-व्यंग्य) आपकी प्रमुख भोजपुरी कृतियाँ हैं। आप द्वारा रचित ‘कुंजन रामायण’ अभी तक अप्रकाशित है।
6. कुलदीप नारायण राय ‘झड़प’ : ‘झड़प’ जी बलिया जिले के लिलकर में 5 अगस्त, 1911 में जन्मे थे। आप प्रारम्भ में हिन्दी में रचनाएँ करते थे। लेकिन भोजपरी साहित्य सम्मेलन की स्थापना के बाद आपने भोजपरी में जमकर लिखना प्रारम्भ किया। ‘दीपदान’ तथा ‘अरघ’ आपकी कविताओं के दो संग्रह हैं। ये दोनों क्रमशः 1977 और 1978 में प्रकाशित हुए थे। 1977 में ही आपके ललित भोजपुरी निबन्धों का एक संग्रह ‘वात क बात’ नाम से छपा था।
ठेठ भोजपुरी और साहित्यिक भोजपुरी, दोनों में समान रूप से हास्य-व्यंग्य लिखनेवाले झड़प जी कवि-सम्मेलनों में खूब जमते थे। उनकी भाषा का एक नमूना देखें-
‘दिन आइल जाड़ा के, मान बढ़ल बाड़ा के,
पुअरा के पहल पर टाटी बन्हा गइल
कहीं वा जोतात खेत, कहीं हरिअरात खेत,
कहीं धान वा कटात, कहीं या कटा गइल ।
कहीं बा बोआई होत, कहीं बा सिंचाई होत,
कहीं पियरे-पियरे सरिसो फुला गइल।
साँझि होत कउड़ा पर, टूटि परसु नारी-नर,
बोरसी के छापि केहू, ओढ़ि के लुका गइल ।।’ (अरघ-49)
4 दिसम्बर, 1993 को आपका देहावसान हो गया।
7. तेग अली ‘तेग’ : तेग अली ‘तेग’ का नाम भोजपुरी साहित्य के इतिहास में ऐतिहासिक महत्त्व रखता है। आप बनारस के तेलिया वाग में रहते थे। किन्तु आपके जन्म-मृत्यु के बारे में स्पष्ट पता नहीं चलता। लेकिन आपकी कविताओं का संग्रह ‘बदमाश दरपन’ भोजपुरी का पहला लिखित हास्य-व्यंग्य संग्रह कहा जा सकता है। यह लहरी प्रेस, काशी से 1895 में प्रकाशित हुआ था। इसका दूसरा संस्करण 1964 में पंडित शिवप्रसाद मिश्र रुद्र ‘काशिकेय’ के सम्पादन में ‘तेग अली और काशिका’ नाम से प्रकाशित हुआ है।
आपकी कविताएँ बनारसी भोजपुरी में हैं। आपकी भाषा चुस्त और मुहावरेदार है। कुछ उदाहरण-
‘हम खर-मिटाव कइली हा रहिला चवाय के, भेंवल धरल बा दूध में खाजा तोरे बदे।
अत्तर तू रोज मल कर, नहायल कर रजा, बीसन भरल धयल बा करावा तोरे वदे।
जानीला आज-कल में झनाझन चली रजा, लाठी, लोहाँगी, खंजर औ-बिछुआ तोरे वदे ।
कासी, पराग, द्वारिका, मयुरा और वृंदावन, धावल करैलें, ‘तेग’ कन्हैया तोरे बदे।।’
8. दूधनाथ शर्मा ‘श्याम’ : आपका जन्म 2 जून, 1917 को देवरिया जिला के पिंडी गाँव में हुआ था। आपकी रचनाएँ दूधनाथ भट्ट के नाम से भी छपी हैं। आप स्वाभाव से ही हँसोड़ व्यक्ति थे। आजीवन गाँव में रहनेवाले श्याम जी का पेशा खेती-गृहस्थी ही था। पर रचना के क्षेत्र में आपने भोजपुरी जगत को बहुत कुछ दिया है। दिग्विजय नाथ (महाकाव्य), बाबा राघवदास (महाकाव्य), द्रौपदी (महाकाव्य) तथा पत्र-पुष्प, ग्राम गाथा, हिमगिरि के नेवता, श्रद्धांजलि, सुदामा-यात्रा, संतन के थाती, जय बजरंग बली, राम सरोवर, उकटा पुरान, लहालोट, कचराकूट, बंग युद्ध, कपि काव्य और कचमर आपकी कविताओं का प्रकाशित संग्रह हैं। इनके अलावा आपकी वहत-सारी अप्रकाशित कृतियाँ हैं।
श्याम जी वात-बात में हास्य और व्यंग्य की बौछार करते थे। गाँव में रहने के कारण ग्रामीण संस्कार उनकी कविताओं में भी.रचा-बसा था। बिल्कुल बोलचाल की शैली में कविता करनेवाले ‘श्याम जी’ शब्दों के पारखी थे। भाव के अनुसार भाषा की तलाश उन्हें नहीं करनी पड़ती थी। कवि सम्मेलनों में वे जम कर काव्य-पाठ करते थे तथा श्रोताओं को हँसाते-हँसाते लोटपोट कर देते थे।
अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के बारहवें अधिवेशन (1992) में जो छपरा में सम्पन्न हुआ था, ‘श्याम जी का सादर अभिनन्दन किया गया था। इस सम्मेलन में आयोजित कवि सम्मेलन में उन्होंने निम्नलिखित कविता सुनायी थी-
‘पत होय लाल, पतोहि होय चालू
त इआर-दोस्त अइले वा।
साह होय सुद्धा, पुलिस मुँहदुवर
सुराज तहाँ भइले वा।
राम-राज वापूजी कहले, रावन-राज वुझाता।
ए सुग्गा, तूं सुग्गी लेलऽ चलऽ ची कलकत्ता।।’
नवम्बर 1993 में ‘श्याम’ जी का देहावसान हुआ।
9. बीरेन्द्र कुमार मिश्र ‘अभय’ : अभय जी हास्य-व्यंग्य के कवि हैं। आपका जन्म 7 मई, 1950 है। सारन जिला के ससना में रहते हैं, वहीं आपका जन्म-स्थान भी है। द्रौपदी चीरहरण (खंड-काव्य) के अलावा कहानी संग्रह (10 कहानियाँ), कविता-संग्रह (100 कविताएँ) और ‘लहोक’ आपकी अन्य कृतियाँ हैं। ‘लहोक’ भी कविता-संग्रह ही है।
10. मंगला प्रसाद सिंह ‘मगल’ : बलिया जिला के पहाड़पुर गाँव में 1 मार्च, 1943 को जन्मे मंगला प्रसाद जी की हास्य-व्यंग्य कविताओं का संग्रह ‘खटमिठवा’ और कुकुरौंहा नाम से प्रकाशित हैं। आपकी कविताएँ ‘आकाशवाणी’ के गोरखपुर केन्द्र से प्रसारित होती रही हैं। आप सरकारी सेवा में हैं।
11. मुक्तेश्वर तिवारी बेसुध/ चतुरी चाचा : मुक्तेश्वर तिवारी वेसुध अथवा चतुरी चाचा भोजपुरी हास्य-व्यंग्य साहित्य के इतिहास में अलग पृष्ठ हें। आपका जन्म वैशाख शुक्लपक्ष तृतीया, सम्वत् 1948 विक्रमी, अर्थात् 1927 ई. में बलिया जिले के आसापुर नामक गाँव में हुआ था। ‘सूफी अध्यात्म दर्शन का मध्यकालीन हिन्दी संत-साहित्य पर प्रभाव’ विषय पर काशी विद्यापीठ ने आपको डाक्टरेट की उपाधि दी क्षी। आप चितबड़ा गाँव के मरचेंट इण्टर कॉलेज में अध्यापक थे।
आपने भोजपुरी की, गद्य तथा पद्य, दोनों विधाओं में हास्य-व्यंग्य रचनाएँ की है। ‘आज’ में प्रकाशित आपकी चटपटी चिट्ठियों के संग्रह के अलावा ‘भैइसी के दूध’ नामक कहानी-संग्रह में चौदह कहानियाँ संकलित हैं। गुलछर्रे, मेघमाला, हिमालय ना झुकी कबहूँ, इनकी कविताओं के संग्रह हैं। तिवारी वेसुध जी भोजपुरी जगत में अपनी चटपटी चिट्ठियों के माध्यम से चर्चित हुए। कविता की अपेक्षा गद्य-साहित्य में हास्य-व्यंग्य शैली तया शिल्प के लिए आप मसहर रहे। आपकी गद्य रचनाओं में मिथकीय सोच है। प्रचलित कथा-कहानियों तथा ऐतिहासिक घटनाओं को वर्तमान परिवेश में व्यंग्यपूर्ण ढंग से आरोपित करने में आप सिद्धहस्त हैं। आपकी ‘अंकोर’ तथा ‘ऊपर-झापर’ शीर्षक व्यंग्य गद्य इसी तरह की रचनाएँ हैं।
12. रघुनाथ प्रसाद ‘गुस्ताख’ : गुस्ताख जी कवि सम्मेलनों में हास्य-व्यंग्य कविता सुनाने के लिए प्रसिद्ध हैं। इनकी कविताओं का एक संग्रह ‘गुलछर्रा’ नाम से प्रकाशित है। कई पत्रिकाओं में आपकी हास्य-व्यंगय कविताएँ छपी हैं। ‘आकाशवाणी’, कलकत्ता से आपकी कविताएँ प्रसारित होती रहती हैं। 1938 में जन्में ‘गुस्ताख’ जी हुगली जिला के रोसड़ा के रहनेवाले हैं।
13. रामकृष्ण वर्मा ‘बलबीर’ : बलबीर जी तेग अली ‘तेग’, के समकालीन कवि थे। आपका जन्म काशी के एक खत्री परिवार में 1859 में हुआ था। आपका देहावसान 1906 में हुआ। आप बनारस के ‘भारत-जीवन’ नामक साप्ताहिक के सम्पादक भी थे। आपकी काव्य पुस्तक का नाम है-विरहा नायिका भेद। इसमें 59 बिरहे हैं। यह पुस्तक जीवन प्रेस, काशी से 1895 में प्रकाशित है। इसके बिरहे सरस हैं और नायिका भेद के उदाहरण भी हैं। ननद-भौजाई के एक वार्तालाप में ननद कहती है-
लजिया के वतिया में कइसे कहूँ ए भउजी, जे मोरे बूते कहलो ना जाय।
पर्ह के फुगनवाँ में सियली चोलियवा में असो ना जोबनवाँ समाय ।।
14. रामेश्वर सिंह काश्यप/लोहासिंह : काश्यप जी भोजपुरी जगत में अपने रेडियो रूपक ‘लोहासिंह’ के चलते इतने लोकप्रिय हुए कि बाद में उन्हीं का नाम लोहासिंह पड़ गया। आप प्रहसन तथा रेडियो रूपक के रचयिता रहे हैं। ‘लोहासिंह’, ‘लोहासिंह : मुरव्ये और अन्य करतूतें’ तथा ‘नौलखा हार’ आपके हास्य प्रधान रेडियो-रूपक हैं। आपके ये रूपक ‘आकाशवाणी’ के कई केन्द्रों से प्रसारित हो चुके हैं। ‘मछरी’ शीर्षक कहानी आपकी व्यंग्य-कहानी है।
वर्तमान रोहतास जिले के सेमरा नामक गाँव में 16 अगस्त, 1929 में जन्में काश्यप जी पहले पटना के बी. एन. कॉलेज में हिन्दी के प्राध्यापक थे। बाद में सासाराम के एस.पी. जैन कॉलेज के प्राचार्य-पद से सेवा-निवृत्त हुए। आपका निधन 1993 में हुआ।
15. रामजी यादव/झलक भाई : रामजी यादव बलिया जिले के राजपुर, गाँव के रहनेवाले थे। आपका जन्म 1 जनवरी, 1953 को हुआ था। आप ‘आकाशवाणी’ में सेवारत थे। ‘आकाशवाणी’, पटना के चापाल कार्यक्रम में आप झलक भाई के नाम से उपस्थित होते थे। आपकी रचना विधा कविता, कहानी और रेडियो नाट्य थी। ‘घरफोडनी काकी’ नामक आपका नाटक प्रसिद्ध है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं आपकी कई व्यंग्य कविताएँ छपी हैं। एक-कविता की बानगी देखें-
‘छोड़वि ना दुहे बिना, कतनो मूड़ि झोर ल
मति तरका भँइसि, ई अंकोर ल।।
ऊ दिन सोचा कि फैंसल रहू कीचड़ में
दूवर-पातल पाँीं रहलू, आँखि घुसल रहे भीतर में
मोटा के मगरेटे लू, ई सिंकर लोहा ह, तूरि ल
मति तरक भैइसि, ई अंकोर ल।।
तू वुझलू का, कि हई, अलगू के पिल्ली
घर-घर के नदिया-जूटिया आऊर जुटरलसि दिल्ली
फेरू ना कटबू चानी, कीचड़े पइय् अवहीं खोरि ल
मति तरक भैइसि ई अंकोर ल।।
जनता ‘यादव’ सिघुआ प चलवले रहू चक्कर,
दाँत चियार के खइयो कइलू गइलू छेद के पत्तल
दूध से जरल मुँह माठा फूंकस, अवहूँ से भोर ल
मति तरका भैइसि ई अंकोर ल ।।’ (कवीरधारा, 1986, पृ. 6)
16. रामजी सिंह/मुखिया : वर्तमान भोजपुर जिले के पवट नामक गाँव में 1923 में जन्मे रामजी सिंह/मुखिया जैसा वमपिलाट कवि भोजपुरी कविता के मंच पर इनसे पूर्व नहीं था। 1960 में आपने अपनी पहली हास्य-व्यंग्य कविता ‘मुखिया होके का करवऽ’ लिखी। यह कविता मंच पर इतनी लोकप्रियता से सुनी गयी है कि रामजी सिंह अब ‘मुखिया जी’ के नाम से प्रसिद्ध हो गये। बाद में आपने मुखिया पर ही दो और कविताएँ लिखीं जो-‘हमहूँ मुखिया होखब’ और ‘अब न मुखिया होइब’ शीर्षक से प्रसिद्ध हुई हैं।
मुखियाजी जब मंच पर खड़े होते हैं तब से शुरू हुई तालियों की गड़गड़ाहट उनके बैठने तक लगातार सुनायी पड़ती है। ठेठ भोजपुरी में, सहज अभिव्यक्ति की शैली में कविता सुनाना उनकी स्वाभाविक विशेषता है। उपर्युक्त उल्लेखनीय कविताओं के अलावा भइया बैला के बेलाबऽ ई तक मूड़ी झाँटेला, ए भोला तू लोला ले लऽ, इहो मामा सुखले बरारी मारेले, और ‘दूनो हाथ से धोई धोबिनियाँ’ शीर्षक इनकी प्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य कविताएँ हैं। मखिया जी की दो सौ हास्य-व्यंग्य कविताएँ हैं. यह जानकारी मुखिया जी ने भोजपुरी वार्ता पत्रिका को एक साक्षात्कार में दी है। आश्चर्य है कि इनकी कविताओं का कोई संग्रह अब तक प्रकाशित नहीं हो सका है।
अविवाहित रहनेवाले मुखिया जी के जीवन का व्यंग्य यह रहा है कि वे स्वयं गरीबी में पले तथा दूसरों को हँसाते रहे। हास्य लिखने के बारे में वे बताते हैं-“हम चार्ली चैपलिन के बारे में पढ़नीं। ओकरा से हमरा शिक्षा मिलल कि गरीव भा लाचार आदमियों दुनिया के हँसा के ओकर पीरा हर सकेला। हम मन में ठान लेनी कि आपन भितरिया दरद के गीत में ना ढालब। भले हम मत हँसी बाकिर चार्ली चैपलिन लेखा लोगन के मरे के बारे ले हँसावत जाइब।’ (भोजपुरी वार्ता-अंक नवंबर 1994, पृ. 34)
एक बार सासाराम में आयोजित एक कवि-सम्मेलन में मुखिया जी की कविता ‘अब ना मुखिया होइब’ सुन कर कविवर हंस कुमार तिवारी ने कहा था- ‘मुखिया-तूं अपना ग्राम पंचाइत के मुखिया भले मत होखऽ बाकिर कवि-सम्मेलन के मंच के मुखिया हरदम रहब ऽ।’ (भोजपुरी वार्ता-अंक नवंबर 1994, पृ. 34)
17. राधामोहन चौबे/अंजन : अंजन जी पुरानी पीढ़ी के भोजपुरी कवि हैं। आपकी हास्य-व्यंग्य कविताओं का पहला संग्रह ‘कनखी’ नाम से 1978 में छपा था। उसके बाद सनेश -1980, नवचा नेह-81, अँजुरी -83, अंजन के लोकप्रिय गीत-83, अनमोल मिलन-90, आपन बोली आपन गाँव-90 तथा गुच्छे अंगुर के-91 आदि आपकी प्रकाशित काव्य कृतियाँ हैं। फिलहाल आप कटेया प्रखंड में प्र. शि. प्र. पदाधिकारी के रूप में सेवारत हैं।
18. विजय बलियाटिक : 1 जुलाई, 1931 को बलिया जिले के मुंडेरा गाँव में जन्मे बलियाटिक जी भोजपुरी कहानी, कविता और लघुकथा तीनों विधाओं में समान रूप से रचनाएँ कर रहे हैं। ‘जय जजमान’ आपकी पन्द्रह हास्य-व्यंग्य कहानियों का संग्रह है। ‘तेली के नाटा आ झाँसा पट्टी’ आपकी प्रसिद्ध लघुकथा है। आपकी कविताएँ आकाशवाणी वाराणसी तथा बी. बी. सी. से भी प्रसारित हुई हैं। काशी विद्यापीठ, वाराणसी में हिन्दी प्राध्यापक के रूप में कार्य करते हुए आपने भोजपुरी के संस्कार-गीतों का भी संग्रह किया है। अब आप सेवा-निवृत्त हो चुके हैं।
19. .श्याम बिहारी तिवारी/देहाती : आप बँसवरिया, बेतिया के निवासी थे। आप हास्य-व्यंग्य के प्रसिद्ध रचनाकार थे। आपकी चौदह चुनी हुई कविताओं का संग्रह ‘देहाती दुलकी-भाग-1’ नाम से 1947 में छपा था। इनकी कविताओं में शृंगारिक हास्य के सरस बिम्ब हैं। एक नायिका के बिरह का चित्रण इस प्रकार किया है देहाती जी ने –
‘कइसे मानी अनुकर वतिया, सुखले सूखल वीतल रतिया
कहाँ जुड़ाइव आपन छतिया, छतवा तुरले जाय।
भँवरा रसवा चुसले जाय ।।’ (पृ.-9)
दूसरा उदाहरण
“सावन मास बहे पुरुआ, जनि केहू के छूटे मिलावत जोड़ी।
का कहीं दोसर के बा इहाँ अब जे इ सुतार में बाँगर कोड़ी।।
जाइव आजु जरूर मुनेसर-भाई के माँग के हीछल घोड़ी।।
योच हुई हमहूँ त पुरान न, के ससुरार में मेहरि छोड़ी।।’
होली का एक चित्र देखें-
‘जगह-जगह पर रंग भरल वा, गगरा-गगरा रंग घोरल बा।
लाल-पियर सब रंग पतर बा, साफ करा ल मोरी हो
उठल फाग बा होरी हो।।’
20. सूर्यदेव पाठक/पराग : 23 जुलाई, 1943 में सीवान जिला के बगौरा में जन्में ‘पराग’ जी की रचना विधा हास्य-व्यंग्य कविता, कहानी, नाटक तथा उपन्यास है। आपका ‘श्रीहीरो चरित मानस’ नामक खंड काव्य काफी प्रसिद्ध है। इसमें स्कूली छात्रों के ऊपर व्यंग्य किया गया है। आपकी कविताएँ ‘आकाशवाणी’, पटना के प्रसारित होती रहती हैं।
पेशे से अध्यापक पराग जी की अन्य रचना कृतियों में अछूत (उपन्यास) आपन-आपन सपना (उपन्यास) तथा जंजीर नाटक प्रसिद्ध है। आप भिट्ठी में रहते हैं तथा वहीं से ‘विगुल’ नामक एक त्रैमासिक पत्रिका भी निकालते हैं।
21. हरेन्द्र कुमार शर्मा/मुँहफट : हरेन्द्र जी सीवान जिले के पिपरा गाँव के रहनेवाले हैं। आपने सामाजिक, राजनीतिक और भ्रष्टाचार आदि पर बहुत सारी हास्य-व्यंग्य कविताएँ लिखी हैं। उनकी ‘बिहार के रोड’ शीर्षक कविता की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-
‘राही पूका फार के रोवे, जब ऊ कतहीं जाई,
रोड़ नमूना ई विहार के लेला रोज जम्हाई।
कतहीं एक नारा उकसल, कतहीं मूड़ी फूटल,
कतही दाँत चियारे ईटा, कतहीं रोड़ा फूटल ।
का जाने के नेता एकर विगरल भाग बनाई,
रोड नमूना ई विहार के, लेला रोज जम्हाई।।
एकरा लहँगा का रफू में नोट खूब उझिलाला,
कंट्रेक्टर-इंजिनियर जेमे वाँट-बाँट के खाला।
झाँवा रोड़ा के पेवन पर होला पीच-पोताई,
रोड नमनाई विहार केलेला रोज जम्हाई।।’
मँहफट जी की कविताएँ प्रायः मंच की कविताएँ हैं। कवि-सम्मेलनों में आपकी कविताएँ बहुत पसन्द की जाती हैं। आये दिन पत्र-पत्रिकाओं में भी खूव छप रहे हैं। इस प्रकार भोजपुरी के हास्य-व्यंग्यकारों की लम्बी तालिका बनायी जा सकती है। प्रसन्नता की बात यह है कि यह तालिक निरन्तर बढ़ती जा रही है। सभी रचनाकारों का परिचय उपस्थित करना तथा उनका विस्तृत उल्लेख करना सम्भव नहीं है। फिर भी पुरानी पीढ़ी के जो प्रमुख भोजपुरी हास्यकार-व्यंग्यकार हैं उनमें मुँहदुब्बर जी, लक्ष्मण पाठक प्रदीप, रघुनाथ चौबे, नागेन्द्रनाथ बाबरा, विश्वनाथ प्रसाद शैदा, तंग इनायत पुरी, ध्रुव नारायण सिंह, बच्चन पाठक सलिल, बेधड़क बलियाटिक, पाण्डेय रामेश्वर प्रसाद, भोलानाथ भावुक, शारदानंद प्रसाद, रामजी पाण्डेय ‘अकेला’, नरेन्द्र रस्तोगी ‘मशरक’ तथा शुकदेव सिंह स्नेही के नाम काफी आदर के साथ लिये जा सकते हैं। नयी पीढ़ी के जो रचनाकार भोजपुरी में हास्य-व्यंग्य की कलम चला रहे हैं उनमें चकाचक बनारसी, खाक बनारसी, विद्याशंकर तिवारी, राजेन्द्र सिंह काश्यप, रामकिशुन प्रसाद, सत्येन्द्र नाथ सिंह दूरदर्शी, अजय तोमर, आदि के नाम प्रमुखता से गिनाये जा सकते हैं।
इसी प्रकार पुरानी पीढ़ी के जिन गद्यकारों ने भोजपुरी हास्य-व्यंग्य को समृद्ध किया है उनमें विवेकी राय, मनु शर्मा, विजेन्द्रलाल अनिल, शिवबली शर्मा सिकंदरपुरी, बालेन्दु शेखर तिवारी आदि के नाम प्रमुखता से गिनाये जा सकते हैं, जबकि नयी पीढ़ी के ऐसे रचनाकारों में घरघुमन सिंह, खोलकदास, त्रिपुरारिशरण श्रीवास्तव, विष्णु गौतम सीबानी, रमाकांत उपाध्याय, शंकर मुनि राय ‘गड़बड़’ आदि के नाम आदर के साथ लिये जा सकते हैं।
उपर्युक्त रचनाकारों के समानान्तर भोजपुरी में व्यंग्य गायकों की भी एक पीढ़ी धीरे-धीरे विकसित हो रही है जो समसामयिक विषयों पर लोकधुनों पर आधारित गीत रचती तथा उसे गाती है। इस पीढ़ी के कलाकारों में मुन्ना और बलेसर यादव के नाम पहली पंक्ति में रखे जा सकते हैं। आये दिन इनके गीत के कैसेट तैयार हो रहे हैं तथा लोकप्रियता से बजाये जा रहे हैं।
ध्यान दीं : इ भोजपुरी कवि सब के परिचय डॉ. शंकर मुनि राय ‘गड़बड़’ जी के लिखल भोजपुरी किताब भोजपुरी साहित्य में हास्य-व्यंग्य से लिआइल बा। ये किताब के पहिला संस्करण २००१ मे आइल रहे, येह से ऊपर दिहल गइल “भोजपुरी के प्रमुख हास्य-व्यंग्यकार” में से कुछ हास्य-व्यंग्यकार हमनी के बीच में नइखीं।
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