परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, रउवा सब के सोझा बा भोजपुरी कहानी नेउर भाई, पढ़ीं आ आपन राय जरूर दीं कि भोजपुरी लोक कथा नेउर भाई कइसन लागल आ रउवा सब से निहोरा बा कि एह कहानी के शेयर जरूर करी।
एगो रहले राजा । राजा के रहली सात गो रानी । बाकिर सात रानी के रहलो पर राजा फिकिरत रहले, काहें कि सातों रानी से कवनो संतान ना रहे । दुखी होके राजा जंगल में चलि गइले । उहवाँ खोह में एगो जटा-जूटधारी महातमा धूनी रमवले लउकलन । राजा हाथ जोरि के उहँवें बइठि गइले ।
ढेर देरी का बाद जब साधु आँखि खोललन, त राजा के उहवाँ बइठल देखिके सवाल कइलन, “कहऽ राजा ! इहवाँ कइसे ?”
राजा अपना मन के बात आ दुख के कारन बता दिहले । महातमा जी फेरु आँखि मूंदि लिहलन । किछु देरी का बाद ऊ आँखि खोलिके कहलन, “राजन ! सोझा आम के फेंड़ पर एके झोंप में सात गो फल लटकल बाड़न स । उहे सातों आम हरेक रानी के एकएगो खिया दीहऽ, तहार फिकिर हुलास में बदलि जाई ।”
राजा फटाफट झोंप के सातों आम तुरले आ महल में जाके सातों रानी के ओकर महिमा बतावत थम्हा दिहले । छव गो रानी त बिना एको छन गँववले आपन-आपन आम खा लिहली, बाकिर सभसे छोट सातवीं रानी आम के ताखा पर धऽके जरूरी काम में अझुरा गइली । ओही घरी उहवाँ एगो नेउर आइल आ आम के जुठिया के चलि गइल । ओने जब घरेलू काम से मुकुती पाके छोटकी रानी के खियाल परल, त ऊ ताखा पर से नेउर के जुठियावल आम उठवली आ महातमाजी के इयाद कऽके खा गइली । नतीजा ई भइल कि छव गो रानी के त बेटा जनमल. बाकिर सातवीं रानी नेउर के बच्चा के जनम दिहली । महल में खुशी लवटि आइल । छवो लरिका बड़ होखे लगलन स । छवो ‘नेउर भाई’ कहिके छोटका के रिगावऽ स, उन्हनी खातिर नेउर एगो मन बहलावे वाला खेलवना हो गइल रहे । नेउर के माइयो सोचसु, चलs, ‘ना’ से ‘हँ’ बा नू!
जब छवो जवान बेटा कमाए-धमाए खातिर परदेस जाए लगलन स, त नेउरो पाछा-पाछा जाए लागल । जब उन्हनी के नजर परल, त सभ-के-सभ एके सुर में कहे लगलन स, “ए नेउरा भाई ! तें कहवाँ जइवे ! जो, घरे लवटि जो !”
बाकिर नेउर घरे ना लवटल, ऊ उहँवें लुका गइल । गरमी के घाम तेज होखे लागल । सोझा एगो आम के गदराइल फेंड़ लउकल । पीयर सेनुरिया आम पाकिके झोंपे-के-झोंप लटकल रहलन स । सभकर मन ललचे लागल । मुँह में पानी भरि आइल ।
मए भाई कहे लगलन स :
‘नेउरा भइयवा जो सँगें-सँगे आइत,
हमनी के रसगर अमवाँ खियाइत !’
बाकिर नेउर त उहवें लुकाइल रहे, ऊ सरपट धउरत कहलस :
‘बानी हम नियरे हो, दूर कहाँ जाइब,
आवऽतानी, रसगर अमवाँ खियाइब !”
छवो भाई चकचिहा के ताके लगलन स । नेउर सरसरा के फेंड़ पर चढ़ि गइल, फेरु पाकल-पाकल मीठ आम खुद चूसत, भाई लोग के अधपाकल-खटमिठवा आम तूरि-तूरिके गिरावे लागल । भरपेट आम खाके नेउर नीचे उतरल । फेरु छवो भाई ओकरा के दुरदुरा के खेदे लगले स । बाकिर नेउर फेरु एगो झाड़ी के अलोता लुका गइल ।
आगा बढ़ला पर एगो फरेन जामुन के झगाँठ फेंड़ लउकल करिया-करिया जामुन देखिके छवो भाई के मुँह में पानी भरि आइल ।
फेरु उन्हनी के नेउरा मन परल आ छवो गावे लगलन स :
‘नेउरा भइयवा जो सँगें-सँगे आइत,
हमनी के करिया जमुनिया खियाइत !’
भाइयन के आवाहन पर नेउर फेरु धउरल आ चिचिया-चिचिया के सुनावे लागल :
‘बानी हम नियरे हो, दूर कहाँ जाइब,
आवऽतानी, करिया जमुनिया खियाइब !’
नेउर कुलाँचत फेंड़ पर चढ़ि गइल आ फ़रेन सवदगर पाकल-पाकल जामुन खुद खाए लागल आ अधपाकल-काँच जामुन भाई लोग खातिर नीचे गिरावे लागल । खूब जामुन खा-खियाके ऊ नीचे उतरल । फेरु जब भाई ओकरा के खदे लगलन स, त ऊ कहलस, “देखऽ लोग ! हमरो कवनो सवख नइखे तहन लोग का सँगें जाए के । हम अब सोझा जवन धोबी के घर बा, ओही में रहब । जब तहन लोग परदेस से लवटे लगिहऽ त हाँक पारिके हमरो के लिया लीहऽ !” आ नेउर ओही घर में ढुकि गइल।
होत फजीरे धोबी-धोबिन गदहन पर लादी लादि के धोबीघाट कपड़ा धोवे चलि जा स । घर में बाँचि जाउ एगो लरिका आ कानी गदही, जवना के देखभाल नेउर करे लागल । साँझि खा धोबिन आके ओकरो के खिया-पिया देति रहे । नेउर लरिकवा के खूब खेलावे आ ओकर खेयाल राखे ।
एक दिन लरिकवा के जब टट्टी लागल, त ऊ बहरी मैदान में ले गइल । लरिकवा देरी ले बइठले रहि गइल ।
नेउर कहलस :
‘हगबे त हगु ना त बान्हब तोहके पगहा,
चलिके देखाउ ना त दमरी के जगहा !’
लरिकवा डेरा गइल आ नेउर के ओह जगहा पर ले गइल, जहवाँ ओकर माई-बाप दमरी गाड़िके धइले रहे । ओतना दउलत देखिके नेउर अचरज से भरि उठल । ऊ सातू में मए सिक्कन के सानिके कानी गदही के खिया दिहलस ।
अगिले दिने भोरहरिए छवो भाई घोड़ा पर चढिके आ गइलन स ।
बोलाहट होते नेउर चले खातिर तय्यार हो गइल । ऊ धोबी से घरे जाए के बतवलस । धोबी ओकरा सेवा से बड़ा खुश रहे । ऊ किछु माँगे के कहलस । नेउर ना-नुकुर करत कानी गदही माँगि लिहलस ।
सातों भाई के घरे पहुँचते माई जलखावा पानी लेके धउरली ।
नेउर अपना माई से कहलस :
‘माई-माई, झटपट अँगना लिपाउ !
माई, धोबीघरवा से मुंगरी मँगाउ !
माई मोर ! आपन सनूक खनिहाउ !’
छोटकी माई खुदे आँगन लिपली, मुंगरी ले अइली आ सनूक खाली कऽके धऽ दिहली । नेउर कानी गदही के मुंगरी से मारे लागल । लीदि का जगहा दमरी आ कीमती सिक्कन से आँगन भरि गइल । माई सनूक में सरिहावे लगली ।
“नेउर भाई, बड़ा चमत्कारी गदही बिया । हमनी के घोड़न से बदलि लऽ ना !” भाइयन के बात मानत नेउर घोड़न के बदला में कानी गदही दे दिहलस ।
भाई ऊहे तौर-तरीका अपनवलन स । मुंगरी के मार पर बाँचल-खुचल एकाधे गो सिक्का निकलल । फेरु मार परल, त गदहिए मरि गइलि । ओने नेउर के माई अभिभूत होके कहली -“हमार कमासुत बबुआ ! भगवान सभ के अइसने बबुआ देसु !”
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