जब कवनो गृहस्थ अपना कंधा पर गृहस्थी के जुआठ बांध के गृहस्थी के भार खिचेला, त उ गृहस्थ अपना-आप में एगो महान व्यक्ति के व्यक्तित्व के महसूस करेला!! काहे की ई संसार मे गृहस्थी से भारी, भार नाही कुछो बा नाही होई. जब समय के अनुसार कवनो लईका आपन जिम्मेदारी उठा लेला त उ जगत बिद्या के नियमानुसार ओकरा के घर-गृहस्थी के खुटा से बांध दियाला।। ताकी उ अब उ जुआठ उठा लेव अउर ओकरा के पूरा जिंदगी खिंचे ताकी ओकर गृहस्थी पुर तरह से हरा, भरा रहे..!
खास कर के भारत के किसान अपना गृहस्थी खातिर आपन सब कुछ निछावर कर देवेला। गृहस्थ के आपन अलग ही पहचान होला भले ही उ दु वक्त बिना खाये रह जाई,लेकिन अपना गृहस्थी खातिर उ अपना आप के साहूकार के पास गिरवी भी रख सकत ता। काहे ना ओकर रोम, रोम कर्ज में डूब जाव बाकिर गृहस्थ आपन गृहस्थी कइल ना छोड़ी।।।
“”जवन सुख, जवन आनंद ओकरा गृहस्थ कहाये में बा उ सायद सुख ओकरा खातिर दुनिया के कौनो वस्तु में नइखे””..
एह साल आषाढ़ त आपन कमाल देखा के बिदा लेत रहे। जब से धान के बिया डलाइल तब से आँख बारिश के एगो बूंद खातिर तरस गईल रहे।।धरती भी तड़पत अउर कलपत रहली, धरती के प्यास के अनुमान एगो किसान ही लगा सकत बा, सरयू मईया के पानी त पूरा उनका पेट मे समा गईल रहे। सोती, पोखर, नहर, गरहा, गुरही के बाते कहे लाएक नइखे दिन में त चिरई के आवाज तक ना सुनाई देव। गाछ के छा में बइठ के देखला के बाद दिखे की खेत मेसे अदहन के भाफ जइसन भाफ निखले अउर आकाश में उर जाये।थोड़ा दूर चलला के बाद फिली के ऊपर तक धुरा से तोपा जाव, अइसन रहे आषाढ़ ।। “आषाढ़ के झाप का होला ई आषाढ़ ना बता पावल असो।।
“नवजात बच्चा के जे लेखा ओकर माई अपना स्थन के अमृत पिया के पाले-पोसे ले ओहि तरी किसान हर साम पम्पीसेट के पानी से अपना अपना धान के बिया हरियर करत रहे लोग,” केतनों पानी दिआव लेकिन बिया के पुलई पे पियरी रहिये गईल रहे।। ओहु में कुछ लोग के बिया जामल अउर कुछ लोग के बिया पानी के अभाव में जर गईल।।
आषाढ़ के बीच मे ही बिया तैयार हो गइल रहे जे तनी रुपिया, पईसा से टाइट रहे उ बोरिंग के पानी से आषाढ़ में ही धान रोपवा देलस। बाकी आउर लोग बारिश के इंतेजार में अपना आप के दिलासा देत रहे..!
दु बीघा के खेतिहर रहले “रामलाल” अपना खाये लाएक उहे दु बीघा में उपजा लेस।धान के बिया उहो डलले रहले,अब चिंता रहे कि धान कइसे रोपाई।उनकर आर्थिक स्थिति ओतना अच्छा ना रहे फिर भी हर जगह, समाज मे उ अपना के केहु के आगे दबे ना देस। उनकर इहे स्वाभिमान उनकरा के समाज मे एगो अलग ही पहचान देले रहे।।
रामलाल के घर मे खाली रामलाल अउर उनकर धर्मपत्नी शांति रहली। दु कमरा के पक्का के घर चारो तरफ से टाट से घेरल आंगन, टाट के ही गेट अउर सामने दुआर, उनकर दुआर बड़ रहे, दुआर पे एगो निम के गाछ रहे उ गाछ के नीचे एगो नाद रखल रहे, जोना पर एगो देशली गाये बांधल रहे।। उ हर साल खेती ही करस दु बीघा में जवन भी अनाज होखे उ लोग अपना साल भर के खर्ची रख के बाकी सब व्यपारी से बेच देव लोग। ताकि केहु के सामने हाथ ना पसारे के पड़े अउर अगिलो साल के खेती में कर्ज ना हो।।
रोज सुबह,साम उ अपना खेत मे ही काम करस बिया तैयार होखे से पहिले ही उ अपना सब खेत के डरारी कस के तैयार कर देले रहले, खेत के कौन,कागर कोड के सब फिट रहले। ताकि पानी होइ त सब खेत मे ही इकठ्ठा हो जाई बस अब इंतेजार रहे बरखा के।।
जे हर आभाव के मारल होला उ कभी भी भगवान के सामने अपना स्वार्थ खातिर हाथ ना फाईलाई काहे की उ सब निर्झर यात्रा कर चुकल रहे ला जोन स्वार्थ से परे रहे ला।। रामलाल भी जब भगवान से बारिश के गोहार करस त खाली एतने कहस, “का भगवान सब के बराबर कर द ना”” ।।
सायद ई आषाढ़ के बिदाई के आशु रहे कि श्रावण के आवे के खुशी। लेकिन जवन भी होखो अब श्रावण आ गईल रहे अउर अपना अइला के रंग आसमान में करिया बदरी के रूप में देखा देले रहे। खूब जोड़ से बिजुरी चमकल अउर घाटा गरजल फिरू झमा झम पानी सुरु भइल सब कोई जोना अमृत के इंतेजार करत रहे उ सायद इहे रहे। रामलाल से रहल ना गईल उ ई अमृत के अमृतपान करे खातिर अपना आंगन में शान्ति के जबरन बाह पकड़ के बारिश में खूब छपा छई करे लगले।। पुरा जम के पानी भइल सब खेतन में पानी लाग गईल बस अब सब के आपन आपन खेत के कानों(लेव) करावे के रहे।
फिर आगिल सुबह राम लाल कुदाल कंधा पर रखले अउर शान्ति से कहले””शान्ति हम जात बानी कानो करावे तू सब कुछ तैयार कर द।ना होइ त आज थोड़े बांध (धान) रोपवा देमं आज दिन अच्छा बा।।
शान्ति जाता में कुछ पीसत रहली, चात के घुमावते कहली” “ठीक बा रउवा जाई हम सब तैयार कर देमं।उहे तैयारी में लागल बानी, हम अभी चना के दाल ही पीसत रहनी बैसन खातिर” “एतना कह के उ मुठी भर चना के दाल जात में डाल देली अउर घुमावे लगली, रामलाल खेत के तरफ चल दिहले गीत गावत..।।
“काहे बदरा मन भावे रामा……. काहे बदरा मन भावे हो।।
नाची मोरवा दिल लुभावे हो…
काहे बदरा मन भावे”……….
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