आसमान के असमानी रंग पर मटिया रंग के गर्दा चढ़ गईल रहे। लागत रहे कि आज ही कालदेव आपन बरसो के भूख मिटावे खातिर ई प्रलय रूपी रूप धारण कइले बाड़े। अभी अभी चारो ओर सूरज के ललित प्रकाश पसरल रहल आ उ गर्म अउर ऊर्जा वान प्रकाश में पछुवा के झोकत हवा ओठ के पानी सूखा के ओठ पे फेफरी पड़ा देले रहे।।
पता न कइसे अउर कब ई भवंडर उठल अउर सब जगह दिन में ही करिया रात कर देहलस।। मौसम के ई रंग अउर रूप देख के गिरजा के करेज पर बिजुरी चमकत बा। बार बार उ आपन आँख बंद कर के ऐके बा रटत बाड़ी।।
“न रउवा बगईचा में ना जाई, रउवा बगईचा में ना जाई। बहुत जोर से आंधी पानी बा। हमरा उ आम के मोह नइखे धइले”।।
बंसी बोरा लेके तैयार बाड़े गिरजा बोरा के पकड़ले बारी,”” गिरजा से बोरा छोरावत बंशी कहत बारे,,” अरे तू पहिले ई बोरा छोड़अ। हम न जाएम त सब कोनो आपन आम बिन लेजइहे सन, ऐजा हाथ पर हाथ धके बईठला से काम न चली।।
ओहु दिन तू रोक़त रहलु लेकिन हम गइनी त आज कच्चा आम के खटाई, अचार, चटनी, बना के धलेलु। अउर जोन बचल उ हितई नतई भेज के खूब बहा बही लूट लेलु।। आज काहे निईखु जाए देत।।
“”गिरजा बोरा के जोड़ से पकड़ के,, “” अब आम के कोनो जरूरत नइखे ,अउर आज सब दिन ले ज्यादा दिन खराब बा, आप ना जाई लुटे दी जे लूटत बा। काहे की उ कोनों निजी धन न ह की पंच के खइला से खत्म हो जाई।। अरे उ प्रकृति के सौंदर्य ह अ ओकरा से जोन भी बा ओमे सब के हक होला।। जब कोनो पेड़ पे फल आवे ला त उ ई न सोचें कि हम केकर हई, भले ही उ काहे न खूद भगवान के ही द्वारा लगावल होखे।। ओपे चिरई, चुरुउँग, किट,पतंग,आदमी अउर जनावर सब के हक बा।।
“”बंसी खिसिया के,, देखअ तू हमरा के ज्ञान के पाठ मत पढाव। हम कोनो अनाड़ी न हई.अउर एगो बात कान खोल के सुन ल अउर ओकरा के गांठ बांध लीहअ।। उ बगईचा हमरा बाप के लगावल ह दोसरा केहु के न जे हम हाथ पर हाथ धके बईठल रही अउर तहार प्रवचन सुनत रही।। हम आपन चीज दोसरा के न खाए देमं?
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बंसी थोड़ा गर्म दिमाग के रहले, उ अपना आगे केहु के ना सुनस जोन मन में आवे उ करस। खास कर के जब आम के सीजन आवे अउर आम के पेड़ पर आम फड़ के लदर जाए तब बंसी के तेवर भी चढ़ जाए।। केहु से सीधा मुह बात तक ना करस. बस दिन भर उहे बगईचा में कटे। जब कोनो नवविवाहित सुकुमारी अपना माँ बने के आभास के आलोक बिखेरे ले, तब ओकरा चेहरा पर पूरा ब्रमांड के सौन्दर्यता अउर ऊर्जा देखे के मिलेला।ओहि तरी आम के पेड़ मोजर धरे खातिर आपन पतई के रंग बदले ला अउर आपन सौंदर्य के सुगन्ध चारो दिशा में बिखेर के मन मोह लेवे ला। तब ई सुगन्ध के मद में मस्त होके चिरई चुरुउँग आकाश में बहुत धूम मचा के कलावल करे ला।। उहे धूम अउर रंग के देख के बंसी आपन बास के मचान लगा लेवे ले ओकरा ऊपर से खर से बनल छत लकड़ी के थुनि गाड़ के ऊपर डाल के आपन मरई बना के ओहि में जेठ के दुपहर अउर आषाढ़ के झमझमात पनबदरा के मजा लेवे लन।।?
अउर पुरा गांव जवार बंसी के व्यक्तित्व के वजह से ना उनका बगईचा के चलते जानत रहे। पुरा दु एकड़ में फईलल उ बगईचा पुरान पुरान गाछ अउर ओपे के आम से प्रसिद्ध रहे। अइसन केहु राहगीर न होई जे गर्मी के दिन में उ बगईचा में ना रुकत होइ।। उ गाछन के बीच मे एगो पानी बोरिंग रहे जोना के पानी बहुते मीठ अउर एकदम गंगाजल जस उजर सुंदर अमृत तुल्य लागे।। उ बड़ बड़ गाछन पर अनेको प्रकार के चिरई के आशियाना अउर ठिकाना रहे। सुबह अउर साम के उ सब के आवाज़ से पूरा बगईचा चहक जाव।। जब बिंदा न रहस त गांव के लईका सब आ के बगईचा के छाह में गुल्ली डंटा, चिकईता, कबड्डी, त कुकुहुका खेअसन अउर चिरईयन के आवाज भी निकाल के चिरई सब के चिढ़ाव सन।। अइसने मजेदार रगे बंसी के बगईचा जेकरा वजह से बंसी के भी मन घरे न लागत रहे।।
गिरजा के रोकलो के बाद बंसी न रूकले. मन के हठी इंसान के केहु नइखे रोक सकत जब तक उ आदमी के हठ अपने गलती से न टूटे।।
बंसी के बगईचा में पहुचते ही जोन करिया बदरी चमकत अउर गरजत रहे। उ अउर तड़पे लागल साथ मे जोड़ के हवा भी चलत रहे. उ हवा में हवा के साथ हवा नीयन धूल,कड,सुखल पतई अउर ख़रीहानि में दावल थ्रेसर से गेहूं अउर जव के भूसा आज सुई अउर तलवार जस काम करत रहे हवा से गठबंधन कर के ।।?
बंसी के त देखते केतना लइकन भाग गईलअ सन लेकिन जोन मनढिट रहल सब उ न भागल। हवा के तेज के आगे कुछो न लउकत रहे . बंसी केतनो चिल्लास ओकनी के न सुनाई देवे। बंसी के गुस्सा अउर बढ़ गईल उ हवा के साथे साथे थोड़ा सा दौड़े लगलन लइकन के भगावे खातिर। जब उ कोनो के लगे जास त उ उनका से पहिले ही हवा में उर जा सन, बंसी के अब आम बीने के शुध न रहे अब त ऐकेगो जिद रहे कि लइकन के पकड़ के मारे के! लइकन के सोभाव अउर ऊमर के चंचलता ओकनी के बंसी के हाथे न लागसन।। बंसी के अब उम्र में गिराव आ गईल रहे उनकर भी एगो लइका रहे. जोन बीए में बढ़त रहे मुकुन्द नाम रहे ओकर पढ़ाई के वजह से बाहर रहत रहे।। बंसी थक के रुक गइले अउर लइकन के धमकावत कहले।
“धमकी के भाव मे पुरा रोस से” आज हमार मुकुन्द रहित त तू लोग के खबर लित,। अभी एतने कहले रहले की बहुत जोर से बिजुरी चमकल अउर तेज हवा के साथे बरखा भी बरसे लागल। ओहि बीच मे भयावन चरचराहट के आवाज़ आइल अउर बंसी चीख पडले”” अरे माई हो बचावअ”” एतना आवाज सुन के जोन लईका ओजा रहल सन सब दउड़ के आगईले जा।।
बाकिर ओजा के नजारा कुछ अलग ही रहे। बरहन अउर मोट डारहs टुट के बंसी के देह पर गिर गईल रहे. अउर बंसी अचेत पड़ल रहले उनका माथा में गहिरा चोट आ गईल रहे।! उनकरा के उठा के सब लईका उनका के ग्रामीण सदर अस्पताल पहुचा देलअ सन। ओकरा बाद उ गिरजा से जाके कहल सन, अस्पताल में बंसी के इलाज सुरु हो गइल रहे।। अब हवा अउर पानी भी अपना गुनाह के खामोस होके देखत रहे।
गिरजा जब सुनली त उनका मुह से शब्द न निकलत रहरे खाली आँख ही आपन शब्द बया करत रहे।। उ दउड़ल दउड़ल अस्पताल पहुँचलि अउर डॉक्टर से पुछली ।।?
गिरजा आपन आचर से आपन आँख के दर्द छुपावत अउर आवाज में थरथराहट के रोकत डॉक्टर से पुछली”” डॉक्टर साहब उहा के कहा बानी अउर कइसन बानी बताई, बताई डॉक्टर साहब बताई।।
डॉक्टर “सुरेश” गिरजा के समझा के कहले रउआ घबराई जन हमनी के इलाज कर तानीजा, अभी हम कुछ नइखी कह सकत।। अउर सुरेश मरीज के पास चल गइले।?
गिरजा पास रखल कुर्सी पे बइठ गइली अउर आपन अचरा से मुह ढक के रोये लगली।।
जब इंसान रूपी जीव के ऊपर संकट के बादल घिरे ला त उ इंसान के मन मे बहुत प्रकार के कलुषित भावना प्रगट कर देवेला, जोन ओकर खुद के करेज दहला देवे ला।। कुल शुभ अशुभ के बिचार गिरजा के अंतर मन के घेरत बा अउर छोड़त बा।। तर्किबन एक घन्टा बाद डॉक्टर सुरेश अंदर से बाहर हाल में अइले। जब गिरजा उनका के देखली त उ बेचेन हो गइली।।
सुरेश के पास गिरजा जा के पुछली”” डॉक्टर साहब अब उहा के कइसन बानी।।
सुरेश” अभी हम कुछ नइखी कह सकता काहे की उ अभी बेहोस बाड़े। जब होस आई तब पता चली की का पोजीसन बा, हम एतना कहम की माथा में चोट ज्यादा बा अउर खून भी ज्यादा गिर गईल बा।। अब आप आराम करी जब होस आई उनका त हम आप के खुद बोलाएम।। एतना कह के सुरेश फिर वापस ओहि रुम में चल गइले जोना में बंसी के इलाज होत रहे।।
दुपहर से साम हो गइल अउर साम से रात के एगारह बज गईल। उहे कुर्सी पे बईठल बईठल गिरजा के आँख के लोर सुख गईल रहे. तबे एगो नर्स आ के कहलस की रउवा मरीज से मिल सकत बानी उहा के होस आ गईल बा।।
गिरजा के चेहरा पर हल्का सा उ खुशी दिखल जोन मरत आश के जिन्दा कर देलस।। गिरजा दउड़ के बंसी के पास पहुँचलि अउर उनकरा के धके रोये लगली। लेकिन बंसी के कुछो न समझ मे आवत रहे कि ई का होता सायद अभी उ अपना चोट पीड़ा में रहले।। तबे डॉक्टर सुरेश हाथ मे रिपोट के पुरा कागज लेके अइले अउर गिरजा से बोलले।।
सुरेश”” माता जी इहा के रिपोट भी आ गईल बा अउर हम देख लेले बानी।। जोन चोट इहा के माथे पर लागल बा उ बहुत ही गलत जगह पर लाग गईल बा अउर गहिरा बा। ऐसे ओजा के नस दब गईल बा अउर इहा के यादास्त नइखे रह गईल अब इनका होस त रही लेकिन ई बेहोस जइसन ही रहिये काहे की ई चोट के वजह से ई कोमा में चल गईल बाड़े।।
तब तक केहु गिरजा के झकझोर के उठइल्स अउर गिरजा के आँख खुलल। गिरजा के सामने उनकर लईका मुकुन्द रहे. जोन उनकरा के अचेत अवस्था से जगइले रहे।।
मुकुन्द”” माई का बोलत रहलु ह, आँख बंद कर के “”हम न जाये देमं, हम ना जाये देमं'”। जब भी तू ई करिया बदरी अउर चमकत बिजुरी देखे लू त तहरा कुछ हो जाला का माई।। हम जानत बानी की तू बाबू जी के अभियो याद करे लू लेकिन उहा के गुजरला त पांच बरिस हो गइल।। इहे सब के वजह से हम तोहरा के अपना साथ शहर ले अइनी की तू अपना के अकेल महसूस न करबू। ।।
गिरजा आखि के लोर अपना आचर से पोछत कहली”” ह मुकुन्द हम अभी भी उहा के नइखी भूलाइल। ओह दिन उहा के हमार बात मान गईल रहती त आज दोसर दिन रहित।। चाहे कोमा में रह के भी जिंदा रहती य हमार मांग चमकत रहित अ तू अधूरा पढाई छोड़ के घर के जिमेदारी न ढोवतअ।।
तब तक मुकुन्द अपना हाथे खाना निकाल के लेआइल अउर अपना हाथे माई के खिआवता अउर खुद खाता।।।।?