भोजपुरी कहानी अन्हरिया में अंजोरिया : शिप्रा स्वर्णिम जी

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आई पढ़ल जाव शिप्रा मिश्रा स्वर्णिम जी के लिखल भोजपुरी कहानी अन्हरिया में अंजोरिया

केतना दिन जमाना के बाद आज ए पेड़ा से सुरसती के जाए के म‌उका मिलल बा। बग‌ईचा के झिहिर-झिहिर बेयार बड़ा सोहावन लागत रहे।बरियारी गडि़वान के रोकवाए के मन रहे। बाकिर अन्हार हो जाइत त बाटे ना बुझाईत।ल‌इकाई के सगरी बात मन परे लागल।अमवारी के झुलुआ..भ‌ईंस के सवारी..पतहर झोंक के मछरी पकावल..डडे़र पर के द‌उराई..गड़ही में गर‌ई मछरी के पकडा़ई..पुअरा के पूंज पर के चढ़ाई..फेन धब-धब गिराई.. लरिकाईं के एकह गो बात मन के छापे लागल।उहो का दिन रहे। मन के राजा रहनी सन।

शिप्रा मिश्रा स्वर्णिम जी
शिप्रा मिश्रा स्वर्णिम जी

ज‌इसही बैलगाड़ी सतरोहन भ‌ईया के दुआरी पर चहुंपल रोअना- पिटना सुरु हो ग‌ईल। भ‌उजी के मुंह पर के त रोहानिये ओरा ग‌ई रहे। केतना सुनर रहली जबे उतरल रहली तब‌।सुरसती से तनिके उमिरगर होखिहें। भ‌उजी दोंगा क के अईली आ सुरसती के बियाह-गौना भ‌ईल।एक लेखा से सखियारो रहे दुनू में। ना भ‌उजी पढ़ल-लिखल रहली ना सुरसती। बाकिर सनेह एतना रहे कि बे कहले एक दोसरा के मन के बात बूझ लेत रहे लोगिन।

सुरसती के उतरते भ‌उजी भर- पांजा अंकवारी में ध लेहली।”बबी हो बबी आ भ‌उजी हो भ‌उजी” कुछ देर तक गांव-जवार के लोगिन के लोर से भेवें लागल।जब हिक भर लोर उझिल ग‌ईल त भ‌उजी बड़की पतोह से कठरा में पानी मंगवईली आ सुरसती के गोड़ धोए लगली।सुरसती के बेर-बेर मने क‌ईला पर भी भ‌उजी ना मानस-“बड़ा भाग से नु बहिन-बेटी के, भगिना-बाभन के गोंड़ धोए के म‌उका मिलेला।”अंचरा से गोड़ पोंछाईल..भहरा के गोड़ लगली।तब जा के सानत भ‌ईली।

पतोहिया से मिसरी पानी मंगव‌ईली। गांव-जवार के बात बिखिन चले लागल।सतरोहन भ‌ईया के मरला के हुको रहे।बाकिर सुरसती जानत रहली कि भ‌ईया के तीसरको मेहरारू ई भ‌ऊजी रहली।पहिलका देह से त बाले-बच्चा ना रहे।दोसरको से एगो बेटी रहे।दुनू जाने मर-बिला ग‌ईल लोग त ई भ‌उजी उतरली। गांव-जवार टोन मारे- क‌ईसन अभागल कुटुम के बाडी़..अईसन बूढ़ मरद से बियहले बाड़न स।

मने सुरसती निमन से जानतारी कि भ‌ऊजी के पैरा परल केतना सुभ रहे। 13-14 बरस के लुकझुक कनिया केतना महीनी से सबकर निरवाह क‌ई देहली।जे घरी नया नया आईल रहली,ई घर लोगिन से भरल रहत रहे।किरिन उगला से पहिलहीं भ‌ऊजी के छम-छम सुरु हो जात रहे।बड़का-बड़का फुलहा बटुलोही उतारत देरिये ना लागे।धान उसीनला से लेके पनपियाव बन‌ईला ले- सब भ‌ऊजी के कपारे।दुअरा पर गाय-गोहार अलगे..माल-जाल के पखेव बनाव..दूध औंट..।जेठ-ब‌ईसाख..भरल भादो भ‌ऊजी के कपारे कबहूं रेघारी ना आईल।

ढेर दिन पर भेंट भ‌ईल रहे।राति बतियावते बीत ग‌ईल।भोरे नहा सोना के घामा में तर‌ई बिछल।सुरसती के तनी फिकिर भ‌ईल-एगो पतोहिया त आगु-पाछू लागल बिया बाकिर छोटकी त ल‌उकबे ना क‌ईल-“का हो भ‌ऊजी!! तोहार छोटकी पतोहिया न‌ईखे ल‌उकत?”
“अरे का कहबू बबी!अठान-कठान लगवले बीया। तोहार भ‌ईया पढ़ल-लिखल पतोह उतरलें।कहलें-पढ़निहार पतोह निमन होली सन।बाकिर सबमें बहेंगवा उहे बीया..बड़का अंगरेजी छांटेले।”ठठा के भ‌ऊजी हंसे लगली। नन्हका के सुरसती पेठवली-जो रे छवडा़!!छोटकी के बोला ले आव त।कह फुआ बोलावतारी।

तनिका देरी के बाद रमत-झमत पढ़लको पतोह उतरतारी-“परनाम फुआ!क‌एसी ह‌एं फुआ?ईहां गांव-देहात में हमरा मन नहीं लगता है।हम सहर के ह‌एं।हम पढ़ल-लिखल ह‌एं।ई लोग के कुछु बुझाता ह‌ए?कहते ह‌एं हमको अलगा क दीजिए।हमरा से ई चूल्हा नहीं झोंकाएगा।

हम माटी-झेंटी का कार नहीं नूं किये ह‌एं। ईंहां तो कोई बुझबे नहीं करता ह‌ए।आप आईं ह‌ए तो आपही समझाईए ना।”
सुरसती के त काठी मार देहलस।का हो भ‌ईया क‌ईसन पतोह उतरले बाड़।एकरा त देह के सहूरे न‌ईखे।ना मुडी़ पर आंचर,ना कवनो अदब,ई त सलवार-फराक पहिन के नचनिया बनल बीया।अईसन धीर-गंभीर भ‌ऊजी के अईसन बेलूरा पतोह।बड़का हूक के बात बा।

पनरे दिन क‌ईसे बीत ग‌ईल,पते ना चलल।सभे से मेलजोल,सबका ईंहां पुरनका लोग जे रहे बड़ा मान-आदर क‌ईल। सुरसती के करेजा जुड़ा ग‌ईल।अब बेर-बेर बेटवा के फोन आवे लागल।

बडा़ निहोरा-पांती पर भ‌ऊजीओ चले के त‌ईयार भ‌ईली।सुरसती केतना समझवली-बडा़ देह खट‌व‌लू..तोहरा अब आराम के जरुरत बा..अब ई जाल छोड़..धन-बीत रहे चाहे बिलाए..ई लोग बूझे..जिनगी भर तूहीं देखबू..राखी लोग त भोगी लोग..ना राखी लोग त भीख मांगी लोग..तू अब च‌एन से जीय।

एही बीच छोटको बेटा-पतोह अलगा हो ग‌ईल लोग।भ‌ऊजी खातिर निमने भ‌ईल।दिन भर उनकर चूल्हे तर बीत जात रहे।बड़की होसियार रहे।संघे लाग के करवावत रहे। ओकरे के समझा-बुझा के भ‌ऊजी चले के त‌ईयार भ‌ईली। खोईंछा भराईल..दुआरी पर कलसा रखाईल..गांव-जवार के पुरनका लोग सुरसती के अंकवारी भर-भर के बिदा क‌ईल लोग।भ‌ऊजी जेतरे-जेतरे समझवली बड़की पतोहिया सब क‌ईलस।बड़की पतोहिया ओतना पढ़ल ना रहे बाकिर अछर चिन्हत रहे।

रस्ता-पेडा़ में बरहम बाबा,सीतला मा‌ई के अंचरा उठा-उठा के ननद-भ‌ऊजाई गोहरवलस लोग। सुरसती के समझ में ना आईल कि लोग पढ़-लिख के होसियार होला आकि बेपढ़ले।आ अगर निरछरे ढेर होसियार होला त फेर पढ़ला के का जरुरत। बैलगाड़ी के हेव-हेव में सुरसती के बातो भोर परा ग‌ईल।

रचनाकार- शिप्रा स्वर्णिम जी। बेतिया।

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