होली के दिन पति पत्नी में रंग के बहाने कईसे मजाक में व्यंगबाजी होता एह गीत के माध्यम से अनुभव कईल जाव:-
रंगवा हरिअर गोरी कहवां लगवलू गुलाल।ध्रुपद।
किया हरिअर तोर भईया लगवले,
किया नईहर के ईयार,
रंगवा हरिअर ————–लगवलू गुलाल।
नाहीं रंग हरिअर भईया लगवले,
नाहीं नईहर के ईयार,
रंगवा हरिअर ————-लगवलू गुलाल।
ननदो छुलछन हरिअर लगवली,
देवरू लगवले लाल,
रंगवा हरिअर ————-लगवलू गुलाल।
अंग अंग धनी तोरा रंग रंगईले,
कहां खीली रंग हमार,
रंगवा हरिअर ————-लगवलू गुलाल।
बाएं ननद रंग दहीने देवर रंग,
अंचरा प पीयवा हमार,
रंगवा हरिअर ————-लगवलू गुलाल।
धनि धनि बाडु तुं हमरो धनी ह,
युग युग बाढो़ एहवात,
रंगवा हरिअर गोरी कहवां लगवलू गुलाल।
देवेन्द्र कुमार राय
(ग्राम-जमुआँव, पीरो, भोजपुर, बिहार)
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