देवेन्द्र कुमार राय जी के लिखल भोजपुरी होली गीत ए सखी फागुन में

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फागुन में सखी फागुन में
सईंया हमरा के कईले लाचार
ए सखी फागुन में ।

केनहु से आवे धरे भर अंकवारी
आव तुं नियरा मिलीं जा पारा पारी,
कतनो पोल्हाई उ बात न माने
आठो पहर सईंया लुटे बहार,
ए सखी फागुन में

सईंया———कईले लाचार ।
बाएं गाल प हरियर डाले
दहिना गाल प लाल,
सउंसे बदन के रंग से रंगले
देले सिंगार बिगार,
ए सखी फागुन में

सईंया————-कईले लाचार ।
फागुन फाग के रंग रंगईले
प्रेम के रंग में छंवडा़ भईले,
फागुन में सईंया भईले कन्हैया
दिन अछईत देले चोलिया लासार,
ए सखी फागचन में

सईंया————-कईले लाचार ।
सासु जी के बेटा देख अंगना लजाले
फगुआ के पुआ बिना हमरा ना खाले,
फागुन के रंग अईसन चढ़ल बा
कहे आव लुटीं जा मिलिके बहार,
ए सखी फागुन में

सईंया———–कईले लाचार।
कबहीं लुकाहम कबहुं पराई
हुलुकी हुलुकी हम घरवा में जाईं,
कइके इशारा सईंया ई कहल
ई त हउवे प्रेम के फुहार,
ए सखी फागुन में
सईंया हमरा के कईले लाचार ।

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