महंगाई
महंगाई अईसन कईले बा बेहाल
कि नुन रोटी हो गईल मोहाल।
माई के दूध सुखल बचवा के अतडी़
हमरा कमासुत के झुरा गईल गतरी,
आगे बुझात नईखे होई कवन हाल
कि नुन——————–गईल मोहाल।
दर्जन में दाल मिले सुंघे के तरकारी
केहु बुझत नईखे हमरो लाचारी,
अब ना कहाए एह सवतीन के हाल
कि नुन——————-गईल मोहाल।
सुनी सभे हमरो दरद के कहानी
कईसे मिटाईं भूख छुंछे पीके पानी,
सुखि गईल मेहरी के फुलल-2 गाल
कि नुन —————–गईल मोहाल।
जईह ना आके
लुकि छिप के अईह सबसे लुका के
जब तुहुं अईह त जईह ना आके।
होते मुन्हार मन रहि रहि तड़पे
तोहरे के पावे खातीर जियरा ई तरसे
हमरा के देख ल, सबसे बचाके
जब तुहुं ———–जईह ना आके।
हमरा पीरीतीया के तुहीं एगो असरा
खोजेला सनेहिया हमार तोहरे के पंजरा
कोरा में समा जा अंचरा उठा के
जब तुहुं ———जईह ना आके।
जब जियबि हम तोहरे के चाहबि
अगिलो जनम में देवेन्दरे के मांगबि
पीरीतीया बचाईब, चाबे बिका के
जब तुहुं ———–जईह ना आके।
बनि के हम दुलहिन तोहरा अंगना में आईब
तोहरे सनेहिया से मंगिया सजाईब
एको पल ना जियबि हम तोहके भुलाके
जब तुहुं ———-जईह ना आके
का बताईं हो विधाता
नेतवन के रहन देखि कुछ ना बुझाता
देशवा के हाल का बताईं हो विधाता ।
भासन खाली दिहला से पूत नाहीं अईहें
राखि भईल रोटी कवनो कामे नाहीं अईहें
बचवा के मुंह अब देखल नाहीं जाता
देशवा के——————-हो विधाता ।
रोज रोज लाश देख छछनता जियरा
बहुआ के दुख के जाए ना केहू नियरा
माई के अंचरा के फूल झरि जाता
देशवा के —————–हो विधाता ।
टुअर भईल बचनवा खेली केकरा गोदी
मांगि अब कतना धोवईब हो मोदी
बुचिया के राखी बिना बन्हले फेंकाता
देशवा के—————–हो विधाता ।
बचवा के बाबू रोवेले खरिहानी में
छाती पीटत ईहे कहे रही के दलानी में
हमनी के लाठी राजनीति छीनले जाता
देशवा के—————–हो विधाता ।
देश के सुरक्षा के तु़ं पाठ ना पढा़व
दुध पीयले होख त बेटा सीमा प पेठाव
राय अब हमरा ना सहले सहाता
देशवा के—————–हो विधाता ।
देवेन्द्र कुमार राय
( ग्राम+पो०-जमुआँव, पीरो, भोजपुर, बिहार )