शहर में रह के सकुताइल रहीला
गांवें जाए बदे अकुताइल रहीला ।
रोजी रोटी के फेरा जवन ना करावे
एही से त हम चुप लगाइल रहीला ।
परानी छोड़ आपन परदेश में बानीं
दु पइसा के बंधन में बन्हाइल रहीला ।
बाबुजी फोन पे कुछ कह ना पावें
बोली माई के सुन के धधाइल रहीला ।
याद आवे चबूतरा बरम बाबा के
हर घरी हम ओहीजे खिंचाइल रहीला ।
खेत खरीहान आपन विराना भइल
बारह घंटा इहां हम जोताइल रहीला ।
उ बचपन के संगी बोलावें हमें
इहां भीड़ में हम भुलाइल रहीला ।
ओह माटी के गंध कबो ना बिसरे
जवना याद में हम सनाइल रहीला ।
भाग दौड़ के जिंदगी से उब गइल बानीं
अब अपने आप से कोहनाइल रहीला ।
रत्नेश चंचल
वाराणसी
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