रात अन्हरिया, दिया जराईं, डगर डगर उजियार करीं
बहुत सरहनीं महल के रउआ, अब मडई से प्यार करीं
सागर के पानी ह खारा, एह में डुबकी लिहले का
ताल तलइया वाला पानी, गंगा जी के धार करीं
देखीं दुःख के दानव छउकी, छउकी रार मचवले बा
भूख का मारे के पहिले, ओकरा छाती पर वार करीं
सांच हवे जब देहिया, माटी के ह माटी मिल जाई
तब देरी का, माटी मिल के भी उनकार उपकार करीं
साहस के लहरइले, परबत के हियरा भी दरकेला
बखत पड़े कतहीं त मन के लोहा , तन तलवार करीं
बीतल दिन भा गइल जवानी, कबहीं लउट के आई ना
मस्ताना एह कडूआ सच्चाई से ,नयना चार करीं .
( डॉ मस्ताना के भोजपुरी काव्य संग्रह ” जिनगी पहाड़ हो गईल’ से)