पढ़ीं सभे कवि ह्रदयानन्द विशाल जी के लिखल भोजपुरी अध्यात्मिक गीत दुलहिन डोली मे जाली सुसुकत सफर मे केहु ना संघाती साथी लउकल डगर मे केहु ना….
दुलहिन डोली मे जाली
सुसुकत सफर मे
केहु ना संघाती साथी
लउकल डगर मे
केहु ना….
संगे कुछउ रहे ना
सामान जब टोवली
काटे के परल उहे
जवन जवन बोवली
का ले परोसबि आगा
पियावा के घर मे
केहु ना….
सुख नाही चिन्हनी बन्हनी
दुखावा के मोटरी
अँचरा के कोर मे
पारल रहल गेंठरी
लुर ना सहुर सिखनी
रहि के नइहर मे
केहु ना….
राज भोगे केहु केहु
भोगेला दुख हो
जवने परोसल जाई
आई सनमुख हो
ह्रदया विशाल इहे
होला दुनिया भर मे
केहु ना….
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