भिखारी ठाकुर के सामाजिक कुरीतियन पर चोट
कवनो जनरीति के जब सामाजिक मान्यता मिला जाला त उ रूढ़ी बन जाले । जब पीढी दर पीढ़ी उ रूढ़ी फइलत जाले त प्रथा के रुप लेले । समाज समय समय पर प्रचलित प्रथा सन के बारे में विमर्श भी करेला । एह विमर्श में हमेशा प्रतिक्रियावादी तत्वन के बोलबाला रहेला । परिवर्तन के हिमायती लोगन के साथे जन समर्थन ना रहे । तबो हर दौर में कुछ लोग अइसन आवेला जे व्यक्तिगत खतरा मोल के भी सामाजिक कूरीतियन पर प्रहार करेला । कबो राजाराम मोहनराय के रुप में त कबो ईश्वरचंद्र विद्यासागर के रुप में ।
भोजपुरिया समाज भी समय समय पर सामाजिक कुरीतियन पर चोट कइले बा । कबीर त एही समाज से निकल के पुरा उतर भारत में परिवर्तन के आह्वान कइलन । बीसवीं सदी के शुरुआती दौर के भोजपुरिया समाज तमाम तरह के विसंगति के चपेट में रहे । छुआछूत ,बाल विवाह ,बेमेल विवाह ,विधवा विवाह पर रोक आदि समाज के दैनिक व्यवहार बन गइल रहे । एगो हलचल के जरुरत रहे बतकही शुरु करे खातिर । एही समय में भिखारी ठाकुर के रंगमंच जनम लिहलस । जमल तालाब में एगो रोड़ा फेंकाइल आ हलचल के शुरुआत भइल । भिखारी ठाकुर के सामने बड़हन चुनौती रहे । भोजपुरिया सामंती समाज ही ज्यादातर उनका चोट से आहत होखे । लेकिन चोट मारके आस्ते से सहलावे के हुनर भी उनहीं का लगे रहे ।
बेटी वियोग में अपना से कई गुना वर देख के बेटी जब चित्कार करतिया त केकर करेजा नइखे फाट जात-
केइ अइसन जादू कइल ,पागल तोहार मति भइल,
नेटी काटि के बेटी भसिअवल हो बाबूजी ।
रोपेया गिनाई लिहलs पगहा धराई दिहलs,
चेरिया के छेरिया बनवल हो बाबूजी ।
आ ई दर्द अपने जाति पर ओढ़ावत भिखारी बाबा कहतारन –
हम कहके जात बानी ,होई अबकि जीव हानी,
नाहीं देखब नईहर नगरिया हो बाबूजी ।
हम हईं नाई जात ,खोलि दिहलीं मुख बात ,
लछिमी के लछन उतरलs हो बाबूजी ।
बिधवा विलाप में पति के विछोह के दर्द भुलावे खातिर मुसमात भगवान में आपन मन रमावत कहतारी-
हो मोर कन्हैया अँगनवा में आजा , सुरपुर गईलन हमार सिरताजा ,
केकर मुँह जोहीं तु आके बता जा , हो मोर कन्हैया अँगनवा में आजा ।
नशा मुक्ति के अभियान आज देश भर में चल रहल बा । भोजपुरिया समाज ओह बेरा भी गांधीजी के नशामुक्ति आंदोलन के साथे खाड़ रहे । “कलियुगी प्रेम” में भिखारी बाबा एगो दुखियारी मेहरारु के दरद साफ उघार देत बाड़न-
निसा खा के पिया मोर ,दिहलन कपार फोर
से परल बानी निसईल के पालवा हो लाल
बेंचि के चौकठ केंवारी ,तन पर के हमरा सारी
से सेतिहे में बिगलन मोहरमालवा हो लाल
चारो वर्ण के एक साथे देखे के कल्पना करत भिखारी बाबा अस्पृश्यता पर चोट करत कहत बाड़न-
प्रथम शूद्र द्वितीय बईस ,तृतीय क्षत्री हाथ ।
चौथे ब्राह्मण बकत मुख, सेही रहत एक साथ ॥
– संजय सिंह (आखर के फेसबुक पेज से)