भाषायों में दलित भाषा : भोजपुरी भाषा

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हमार ई शीर्षक हो सकेला केहू-केहू का ना पचे। लेकिन तनि ध्यान देहला पर जरूर बुझाई कि आजुओ ले भोजपुरिया लोगन के प्रति सवर्ण या कुलीन लोग में समानता के दृष्टिकोण ना उपजल। भोजपुरी भाषा के आजुओ एतना समृद्धि के बावजूद भाषा के समाज में सबसे नीच या अछूत मानल जात बा। हिंदी के बाद हमनी के आबादी सबसे बेसी बा… हमनी के देश के हर क्षेत्र में योगदान भी कम नइखे… एकरा बावजूद भाषा अउरी सम्मान के दृष्टिकोण से कुछ बात बिनि-बिनि के निचला पावदान पर राखे के साजिश चली रहल बा। एहतरी के शोषण अउरी उत्पीड़न के देखि के इ शीर्षक दीहल हमरा समझ से एकदम उपयुक्त बा।

आजकल जवना तरीका से भोजपुरी भाषा के पीछे हिंदी साहित्य के कुलीन लोग हाथ धोइ के पीछे पड़ल बाड़न ओकर मूल उद्देश्य चाहें कुछु होखे बाकिर ओह बाति से खाली शोषण निकलि के आवत बा अउरी कुछ ना। ओह लोगन के एह अथाह समृद्ध पारम्परिक भोजपुरी में खाली गारी, पोर्न, अपराध अउरी संस्कारहीनता ही लउकत बा। इहवाँ अपने देश में ढेर दिन से अइसन माहौल बनावल आ मजाक बनाई के राखल बा कि भोजपुरिया लोग नीच अउरी गन्दा होला। कुछ हकीकत में उदाहरण भी मिलि जाला जवना कारण संस्कारित भोजपुरिया लोगन के भी आपना मातृभाषा में बोलला-बतियावला में शरम आवेला। ई एगो बरियार साजिश बा जवना के भोजपुरिया लोगन के बुझे-समझे के पड़ी। राजभाषा अउरी राष्ट्रभाषा के नाम पर मजदूर बनावे के खेल के समझे के परी।
भोजपुरी भाषा के दलित अउरी भोजपुरिया लोगन के नीच माने वाला उहे लोग बाड़े जवना लोगन किहाँ भोजपुरिया लोग नौकरी या मजदूरी करेलन। आ देश के सभ्य, कुलीन अउरी तथाकथित संस्कारित लोग अपना नौकर संगे जवन व्यवहार करत आवत बा लो ओइसने व्यवहार भोजपुरी संगे होत बा। एह के जिम्मेदार उ लोग त बड़ले बा लो संगे-संगे हमनिओ के बानी जा। आजादी के एतना दिन बादो हमनी के क्षेत्र विकास के दू-चार कदम भी ना चलि पावल। हमनी के क्षेत्र में राजनीति के जवन गन्दा खेल चल रहल बा कवनो ना कवनो उपाइ से उ सब रोके के पड़ी। अब पानी कपार से ऊपर होखल जात बा… अब कवनो तरीका के नीचता के जबर जबाब देबे के पड़ी। याद राखीं सभे ‘घर फूटे गवार लुटे’।

तनि ध्यान से अपना भारतीय राजनीति के देखल जा त साफ लउकत बा कि अब राजनीति से कुनीन सोंच के सफाया हो रहल बा। एह कुलीनता में एतना साजिश बा कि कवनो ना कवनो उपाइ लगा के उ आपन अभी साख बनवले रखले बिया। हमारा समझ से ई कुल एहि से बा कि दलित लोग उत्साह में कुछ अधिकाई करे लागल बा लो। सब जनला-सुनला के बाद हमनी के ध्यान देबे के होई कि कवनो तरीका से केहू के हमनी के विरोधी नइखी जा। हमनी के शोषण से कब अउरी कइसे मुक्ति मिली ई जरूर विचारणीय प्रश्न बा। जब राजनीति में दलित लोगन के उद्धार हो सकेला त भाषा में दलित भाषा भोजपुरी के काहें ना? जब राजनीति में दलित राजनीति अपना एगो-दुगो महापुरुष के आगे राखि के दलित आंदोलन जन-जन के भीतर क्रांति के बीज रोपि के आंदोलन के धार दिया सकेला त भोजपुरी के काहें ना? जब राजनीति में दलित हमनी के अगुआ बन सकेलन त भाषा में भोजपुरी भाषा काहें ना?
हमनी के खूब नीमन से पता बा कि कइसे दलित लोगन के हजारों साल ले दबाई के गुलाम नीयर वर्ताव कइल गइल। उनका के जमीन-जायदाद से बेदखल कइके जानवर नीयर मारल-पीटल गइल… उनका के दोयम दर्जा के जिनगी जिए खातिर कउनो अधातम ना छोड़ल गइल। ठीक इहे कुलीन सोच पहिलहीं से आजु ले हमनी के भाषा पर हावी बिया। एही से हमनी के धरती एतना बड़े-बड़े विद्वान के पैदा कइके भी छटाइल बिया। हमनी के मये बुद्धि, विवेक अउरी सोंच के कमतर कइले बिया। इहे ना देश के हर क्षेत्र में इहे सोंच हमनी के आपन पहचान बतावे से हमेशा से रोकत रहल बिया।

त ए भाई का आप सबके खाली ए दू-चार गो कारण से हमनी के संगे हमेशा कुजाति नीयर व्यवहार करके अधिकार मिलि गइल बा? यदि हमनी के भाषा अउरी भाव के दलित सिद्ध कइके हमनी के गुलाम बनवले राखल कुलीन लोगन के आदत में सुमार हो गइल बा त साफ-साफ बता देत बानी कि ई अब ई कुल ढेर दिन ले ना चली। जब देश के राजनीति अउरी समाज में दलित लोग के उत्थान हो सकेला त हमनी के भोजपुरिया लोगन के काहें ना होई? ठीक बा कि भोजपुरी में ओतना साहित्य नइखे… इहो ठीक बा कि हमनी के भोजपुरी में ओह कुलीन लोगन जइसन हजार लोग नइखन ओह लोगन के तुलना में भोजपुरी में विद्वानन के कमी बा। त ओहसे का हो गइल… का हम दलितन के जिए के अधिकार नइखे?

एगो साजिश के तहत भोजपुरी भाषा अउरी संस्कार पर हमला कइके हमनी के दोसरा भाषा के पिछलग्गू बनावे के खेल सदियों से चल रहल बा। ओह तमाम भोजपुरी साहित्य के ताक पर राखि दीहल जात बा जवना में शोषण, गरीबी, दहेज़ समस्या, बेरोजगारी अउरी तमाम समस्या के सुन्दर वर्णन कइल बा। लेकिन अब जब कुछ लोग जागरूक हो गइल बाड़न त लोगन के ई बात पचत नइखे। हमनी के जान लेबे के होई कि अभी ई सब शुरुआत ह। जइसे-जइसे जागरूकता फइली वइसे-वइसे लोगन के छटपटाहट बढ़ी। सबसे ढेर दिक्कत भोजपुरी भाषा के अपना लोगन से बा। लेकिन ए कुल से अऊंजाये के नइखे… हमनी के भोजपुरी बोलला से लेके खूब लिखला के काम बा। हिंदी क्षेत्र के विद्वान लोग से ई हठजोड़ी अउरी अपेक्षा बा कि अपना मातृभाषा से उऋण होखे खातिर कम से कम एगो रचना भोजपुरी में कइल जा। लाज के छोड़ि के सीना तानि के कहला के काम बा कि हम भोजपुरिया हई अउरहमार भाषा भोजपुरी ह।

– समीर कुमार पांडे

ध्यान दीं: इ पोस्ट आखर के फेसबुक पेज से लिहल गइल बा

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