बढई-बढई खूँटा चीर खुँटवा में दालि बा, का खाईं का पीं, का लेके परदेश जाईं

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नानी दुवारे तरई बिछावत नेहा के बोलवली-“नेहा! मुन्हार होता ,आव$ दुवारे,तरई बिछवले बानी,बइठ$ तउलक रसोई बनेला।”नेहा घरमें से अउते कहली-त नानी कथ्था कहबू नँ?”नानी हामी भरि दिहली।’हँ’सुनते नेहा मीना के दुवारे दउरि गइली। ओन्ने काहाँ..ओन्ने काहाँ, नानी कहते रहि गइली।

बढई-बढई खूँटा चीर खुँटवा में दालि बा, का खाईं का पीं, का लेके परदेश जाईं
बढई-बढई खूँटा चीर खुँटवा में दालि बा, का खाईं का पीं, का लेके परदेश जाईं

कुछू सोंचें कि एतने में नेहा चार- पाँच गो लइकन की साथे आके तरई पर बईठि गइली।नानी हँसे लगली-“इहे जुटान करे गइँलू ह?”तुफनिया कहलसि कि “ईहे कहली ह ईया कि चल जाँ हमार नानी कथ्था कहे जातड़ी।” “आच्छा त ई अकेल्ले ना सुनिहें संहतिया लोग चाहीं, त चुपचाप बइठ सो ,हल्ला ना होखे के चाहीं।”
“हमनीं के हल्ला ना करब जा नानी ,अब तूँ कथ्था कह”-नेहा नानी के लगे घुसुकत कहली।” “हुँकारी परिह जाँ ना त ना कहेब”परब$जा न?अँहूवइह जा नति।”-नानी के पूछते सगरी लइका कहलें-“हँ..पारेब जा।” “त सून जा”-नानी कथ्था कहे लगली। एक लाइन कहें कि सब एक्के बेर बोलें सो-“हँ…हँ”—–

एगो चिरई रहे। घूरा पर चरति रहे। चरते में एगो रहरी के दाना पउलसि।लेगइलि चकरी में दरे।लागलि दरे बाकिर एगो दलिया गिरल एगो गिरबे ना कइल, बहुते परयास कइलसि।

गइलि बढई के लगे। कहलसि-“बढई-बढई खूँटा चीर खुँटवा में दालि बा,का खाईं का पीं , का लेके परदेश जाईं?”

बढई कहलें-“हँह्…इनका खातिर हम जाईं खूँटा चीरे, ना जाएब।”

चिरई अब का करो…गइलि राजा लगे।कहलसि-“राजा..राजा ! बढई डाँट।बढई ना खूँटा चीरे।खुँटवा में दालि बा ।का खाईं का पीं,का लेके परदेश जाईं?”

राजा कहलें-“हँह्…इनका खातिर हम जाईं बढई के डाँटे, ना जाएब.. जा..।”

चिरई बड़ी निरास भइलि।अब गइलि रानी लगे। कहलसि-“रानी..रानी ! राजा डाँट, राजा ना बढई डाँटें ,बढई ना खूँटा चीरे।खुँटवा में दालि बा।का खाईं, का पीं,का लेके परदेश जाईं?”

रनियों कहली-“हँह्.. ईनका खातिर जाईं हम अपने राजा जी के डाँटे..ना जाएब..जा..।”

चिरई का करो..अब गइलि सरफ लगे।कहलसि-“सरफ..सरफ! रानी डँस। रानी ना राजा डाँटे।राजा ना बढई डाँटे।बढई ना खूँटा चीरे खुँटवा में दालि बा।का खाईं का पीं,का लेके परदेश जाईं?”

सरफ कहलें-“हँह्..इनकी खातिर जाईं रानी के डँसे, ना जाएब.. जा..।

चिरई त बहुते निराश होखे बाकिर हार ना मानें। गइलि लाठी लगे कहलसि-“लाठी..लाठी !सरफ मार।सरफ ना रानी डँसे।रानी ना राजा डाँटे।राजा ना बढई डाँटे। बढई ना खूँटा चीरे।खुँटवा में दालि बा ।का खाईं ,का पीं,का लेके परदेश जाईं?”

लाठी कहलस-“”हँह्..इनका खातिर जाई सरफ मारे।ना जाएब.. जा..।

अब चिरई गइलि आगि लगे।कहलसि-“आगि..आगि!लउर जर।लउर ना सरफ मारे।सरफ ना रानी डँसे।रानी ना राजा डाँटे।राजा ना बढई डाँटे।बढई ना खूँटा चीरे।खुँटवा में दालि बा।का खाईं,का पीं,का लेके परदेश जाईं?”

आगि कहली-“हँह्..इनका खातिर जाईं लाठी जरे। ना जाएब..जा..।”

चिरई त बड़ी सोंच में परलि।गइलि समुन्दर लगे। कहलसि-“समुन्दर समुन्दर!आगि बुताव। आगि नाहीं लउर जरे। लउर ना सरफ मारे।सरफ ना रानी डँसे।रानीं ना राजा डाँटे। राजा ना बढई डाँटे। बढई ना खूँटा चीरे। खुँटवा में दालि बा। का खाईं,का पीं,का लेके परदेश जाईं?”

समुन्दर कहलें-“हँह्..इनका खातिर हम जाईं आगि बुतावे।ना जाएब..जा..।”

“ई त बड़ी मुश्किल के बाति भइल्।अब का होई?”सोंचते चिरई गइलि हाथी के लगे। कहलसि-“हाथी हाथी! समुन्दर सोख। समुन्दर ना आगि बुतावे। आगि ना लाठी जरे। लाठी ना सरफ मारे।सरफ ना रानी डँसे।रानी ना राजा डाँटे। राजा ना बढई डाँटे। बढई ना खूँटा चीरे।खुँटवा में दालि बा।का खाईं,का पीं,का लेके परदेश जाईं?”

हाथी कहलसि-“हँह्..इनकी खातिर जाईं समुन्दर सोखे।ना जाएब..जा..।

अब चिरई गइलि बवँरि लगे।कहलसि-“बवँरि बवँरि!हाथी छान।हाथी ना समुन्दर सोखे।समुन्दर ना आगि बुतावे।आगि नाहीं लाठी जरे।लाठी ना सरफ मारे।सरफ ना रानी डँसे।रानी ना राजा डाँटे।राजा ना बढई डाँटे।बढअई ना खूँटा चीरे।खुँटवा में दालि बा।का खाईं,कापीं,का लेके परदेश जाईं?

बवँरि कहलसि-“हँह्..इनका खातिर जाईं हम हाथी छानें।ना जाएब..जा..।”

अब चिरई गइलि मूँसे लगे।कहलसि-“मूँस मूँस !बवँरि काट।बवँरि ना हाथी छाने।हाथी ना समुन्दर सोखे। समुन्दर ना आगि बुतावे।आगि नाहीं लाठी जरे।लाठी ना सरफ मारे।सरफ ना रानी डँसे।रानी ना राजा डाँटे।राजा ना बढई डाँटे।बढई ना खूँटा चीरे।खुँटवा में दालि बा।का खाईं,का पीं,का लेके परदेश जाईं?”

मुँसवा कहलसि-“हँह्..इनका खातिर जाईं हम बवँरि काटे।ना जाएब ..जा।”

चिरई हारि-पाछि के गइल बिलारि लगे।कहलसि-“बिलारि बिलारि!मूँस धर।मुसवा ना बवँरि काटे।बवँरि ना हाथी छाने।हाथी ना समुन्दर सोखे।समुन्दर ना आगि बुतावे। आगि नाहीं लाठी जरे।लाठी ना सरफ मारे।सरफ ना रानी डँसे।रानी ना राजा डाँटें।राजा ना बढई डाटें।बढई ना खूँटा चीरे।खुँटवा में दालि बा।का खाईं,का पी,का लेके परदेश जाईं?”

बिलारि त मूँस के जोहते रहे।कहलसि-“चल बताव,कहाँ बा मूँस जवन बाति नइखे मानत।”

चिरई बिलारि के मूँसे लगे लेगइलि।बिलारि के देखते मूँस हाथ जोरि के कहलसि-(गा के)
हमके धर-ओर जनि केहू कोई। हम बवँरि काटबि लोई।।

तीनूँ मिलिके गइलें बवँरि लगे।बवँरि देखते कहलसि-

हमके काट-ओट जनि केहू कोई। हम हाथी के छानबि लोई।।
अब सब जानें हाथी लगे गइलें।
हाथी देखते कहलसि-
हमके छान-ओन जनि केहू कोई।
हम समुन्दर सोखबि लोई।।
हाथी सबके संहे चलली समुन्दर सोखे।समुन्दर कहलें-
हमके सोख-ओख जनि केहू कोई।
हम आगि बुताएब लोई।।
समुन्दर चललें आगि बुतावे।
देखते आगि कहली-
हमके बुताव-उताव जनि केहू कोई।
हम लउरि जरबि लोई।।
आगि चलली लउर जरे।लउर कहलें-
हमके जरे -ओरे जनि केहू कोई।
हम सरफ मारबि लोई।।
सबकी संहे लाठी चललें सरफ के मारे।सरफ डेरात् कहलें-
हमके मार-ओर जनि केहू कोई।
हम रानी के डँसबि लोई।।
सरफ चललें रानी के डँसे।देखते रानी कहली-
हमके डँस-ओसँ जनि केहू कोई।
हम राजा के डाँटबि लोई।।
रानी पहुँचली राजा के डाँटे।राजा कहलें हमके डाँट-ओंट जनि कहू कोई।
हम बढई के डाँटबि लोई।।
सब लोग के साथे राजा जब पहुँचले बढई के डाँटे त बढई हाथ जोरि के कहलें-
हमके डाँटे-ओटे जनि केहू कोई।
हम खूँटा के चीरबि लोई।।

एतना कहिके जब बढई बँसुला से खूँटा चिरलें कि ओहिमें से दुसरको दालि गिरि गइल।चिरई एतना मेहनत,दउर-धूप क के दालि पा के बहुत खुश भइलि आ फुर्र …..से अकाशे उड़ि गइल।कथ्था केइसन रहल ह?”-नानी कथ्था ‘सुनत लइकन ‘ से पुछली।सब लइका कहे लगलें निम्मन रहल ह..निम्मन रहल ह कि नेहा कहली-” अब दूसर कह।
“नानी कहली-“सब एके दिनें…?हऊ देख मुनवा अँहूँवाता।अब अपना -अपना घरे जा जाँ,आ तूँ नेहा चल रसोई हो गइलबा।खा के सुत्ते के बा।…चल।

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