अविनाश मिश्रा जी के दुगो रचना

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अविनाश मिश्रा जी
अविनाश मिश्रा जी

राज दिल के सुना दीं त काहें कहअ,
हाल आपन बता दीं त काहें कहअ.
बात के द लुकाए, बा जेइसन जहाँ
बात सबके बताईं , त काहें कहअ..

सच बा गेंहुँ की बाली नियन तु दिखअ
सच बा सरसों की ढेडी ला छागल बजे.
ताहर लहरे बदन, जईसे फूटल बा धान.
दिल में आलू की बिया नियन तु रहअ.
झर के सरसों की फूलवा नियन हम झरीं.
दोष तोहरा मढी हम , त काहें कहअ.

तोख देवे ना आईल अबे आज ले,
बन के मोजर झरीं जब्बे पूरूवा बहे.
खेत के टूटल कउनो क़्यारी हईं,
हमसे पानी बहे ना , त काहें कहअ.

पास देवे ला तोहरा, ना परीतोख बा,
धरती,माटी दिखे हमरा पहिले तोसे,
बात एईसन त ना नेंह तोहसे ना बा
बाकी माटी से जुड़ल कई काम बा
चांद, सूरज, गुलाब फ़िर बखानब कबो
आज ना धरती सवांरीं , त काहें कहअ……

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माई
टूटल चूल्ह के
सुलगत गोईंठा ह,
बाबुजी
चूवत,झरत
मड़ई के छाँव.
बढे लागेला जब
करेजा के ठंढाइ
याद आवे माई…
जरत जहाँन में
जब तावे ला ताव
तब लउके ला
मड़ई के छाँव…
कहेंलें बाबा
सरऊ बनब जब
तुहूं बाप
समझब तु
चूल्ही के टूटल
झरल मड़ई के हाल..
कहि के रूक जालें बाबा
ना जाने काहें
ताकें लें देर ले
आकाशी में
दबवले दुनूं ओठवा..

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