अइसन भइल चीर-फार
मिटी गइल आर – पार
अब कइसे बबुआ नमाज पढ़े जइहें ||
टभकेले रोज रोज मन के दरदिया
बाबा के नावें से लागे सरदिया
सपनों में मोदिए के
नउवाँ बरइहें || अब कइसे — — —
भइया के जोरे उतान रहन अब ले
बहुते मुफुत के मलाई ऊ चभले
साथी संघतिया
नजरिया फेरइहें || अब कइसे — — —
घरवों में दुर – दुर , बहरवों में दुर – दुर
नाचत मोर इहाँ , अंइखत बा घूर घूर
जाने कब राहिल
तखत लेइ जइहें || अब कइसे — — —
हुक्को पर आफति बा,बन होइ पानी
सँभरे बलूचे ना , कश्मीरो मानी ?
अब करबs कुछहू,
तs भुभुनो फोरइहें ||
अब कइसे बबुआ , नमाज पढ़े जइहें ||
पतोह का निबाही के लेखक का परिचय:
जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
इंजीनियरिंग स्नातक ;
व्यवसाय: कम्पुटर सर्विस सेवा
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