आखर के छव बरिस : भोजपुरी के दिसाईं बहुत कुछ नइखे बदलल छव साल में । आजुओ माई भाषा के लुगा लूटेवाला चानी काटतारे सन ।आजुओ 20 करोड़ से अधिका लोग के अक्षर से परिचित करावेवाली भाषा एगो प्रकाशन हाउस खातिर अभागत बिया ।आजुओ अकादमिक स्तर पर भोजपुरी में कवनो विमर्श नइखे होत । आजुओ अपना छाती के बूता से फाटल धरती के तार देबे वाला भोजपुरिया भाषायी अस्मिता खातिर आग्रही नइखन भइल ।
त का कइल जाव ? हाथ गोड़ तूर के बइठल जाव ? एक दूसरा के जिम्मेद्दारी बता के खलिहा बतकुच्चन कइल जाव ? उहे त करतानी जा हमनी के । अपने अभिनंदन ग्रंथ छपवा के दांत चियारत अपने के भेंट करतानी जा । अपने कीनल माला पहिन के ब्रह्मांड भोजपुरी उद्धारक, भोजपुरी साहित्य शिरोमणि, भोजपुरी के पंद्रहवां रत्न जइसन विशेषण के मउर कपार पर लाद के दूल्हा बने खातिर बेचैन बानी जा । कवनो उपलब्धि के संभावना लउकते मुंह से लार चुआवत जुगाली करे लागतानी जा । बेचारी संभावना एतना दावेदारन के देख के हदासे भागो ना त का करो ?
भोजपुरियन के ई मिजाज कबो नइखे रहल । अपना संगीत के बचावे खातिर भोजपुरिया कवनो संगठन आ संस्थान काओर नइखे तकले । समुदाय के ताकत पीढ़ी दर पीढ़ी अपना लोक गीतन के सहेजले बा । बिना सत्ता के चाटूकारिता कइले , भूखे पेट रह के आपन साहित्य गढ़ले बा । धारा के विपरीत चल के आपन स्वाभिमान बचवले बा । अपना वजूद के बचावे खातिर केहु के मुँह नइखे तकले बलुक अपना जांगर के ताप से आसमान के अभिमान गलवले बा ।
छव साल पहिले आखर ओहि भोजपुरिया मिजाज के पाछा चलल । बरिसन से साहित्य के एगो बून्द खातिर छछनत भोजपुरी माई के गोदी में लिखे पढेवाला कुछ लइका लईकी दिहलस । माई सिखावे लागल । लइका लिखे लगलन सन । खुश होके माई अपना अंचरा के गाँठ खोल दिहलस । ओह गाँठ से कहीं “फुलसूंघी” झरल त कहीं “मछरी” । बरिसन से परदा पड़ल आँखिन के सोझा भिखारी के बिरहिन, महेन्दर के नागिन, कपिल के ढेला आ रघुवीर के बटोहिया एक-एक क के प्रकट होखे लगलन । नया रचाये लागल । पुरान पढ़ाये लागल । साहित्य आ संगीत के रचे गढेवाला कुछ बेटा बेटी जनमलन । माई के करेजा जुड़ा गइल ।
आखर बहुत कुछ नइखे कइले । बाकिर उदास आँखिन में चमक जरूर भरले बा । ई चमक बरकरार रहो आ एतना उजास क देव कि भोजपुरी के खराब सोंचेवाला लोग के आंख चौंधिया जाव । बदलाव से ज्यादा जरूरी होला बदलाव के पृष्ठभूमि तैयार कइल । का भइल कुछ खास बदलाव नइखे लउकत त ? जरल घास में सुनुगत पतई के धाही त लउकत बा । चार साल में आखर उहे धाही सिरिजले बा । बधाई आखर ई धाही कायम रहो । बदलाव त होखहीं के बा ।
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– संजय सिंह जी के फेसबुक वॉल से
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