पंद्रह अगस्त आ रहल बा। चारू ओर एकर तइयारी जोर-सोर से सुरु हो गइल बा। पर इ देस के दुर्भाग्य बा की हमनी जान खाली कवनो दिन-बार के मनवलेहीं में रही गइनी जां…एके चरितार्थ ना कइनीं जाँ। देस के समस्यावन के सुरसा लील रहल बिया। मार-काट मचल बा। का सहीद लोगन के सपना पूरा भइल..देस की आजादी की बाद??
दुख की साथे इ आपन रचना परोस रहल बानी-
हमार देस
ना रहल देस
हो गइल भदेस।
हमार देस।
ना कोयल कूके
ना नाचे मोर
चारु ओर सुनाई देता
खाली कांव-काँव के सोर। हमार देस।
माई मम्मी कहा तारी
बाबूजी हो गइने डैड
लोग हो गइल बा
चहारदीवारी में कैद। हमार देस।
नानी-ईया के कहानी
अब कहाँ केहू सुनता
चारू ओर फूहड़ गानन के
बज रहल बा टेप। हमार देस।
चोर, मक्कार
जे बड़ावल भस्टाचार
उ संसद के सोभा बा
पइसा जमा बा विदेस। हमार देस।
गरीब पिसता-पिसाता
पीठ में सतल बा पेट
नइखे भेंटात नून-तेल
भगवान तोहार इ कइसन खेल। हमार देस।।